मुज़फ्फरनगर : मुस्लिम राजनीति में रसूख रखने वाले राना हाउस का सियासी सूखा मीरापुर उपचुनाव से भी खत्म नहीं हो सका। पूर्व सांसद कादिर राना की पुत्रवधू सुम्बुल राना हार गईं। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद एक भी चुनाव में कामयाबी नहीं मिल सकी है।

राना परिवार ने सियासत की शुरुआत पहले सुजडू और शहर पालिका से की थी। कादिर राना एमएलसी बनाए गए और फिर 2007 में रालोद के टिकट पर मोरना विधानसभा सीट से विधायक बन गए। राना दल बदलकर 2009 में बसपा में शामिल हुए और मुजफ्फरनगर से सांसद चुने गए थे।

उनके सांसद रहते हुए ही 2013 में मुजफ्फरनगर दंगा भी हुआ। यहीं से राना परिवार की मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गईं। 2014 में लोकसभा के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 2017 में पूर्व सांसद कादिर राना ने अपनी पत्नी सईदा बेगम को बसपा के टिकट पर बुढ़ाना विधानसभा से चुनाव लड़ाया, लेकिन सिर्फ 30034 वोट ही हासिल हुए।

इसके बाद राना ने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया। 2019 और 2024 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला। मीरापुर के उपचुनाव में सपा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बेटे के लिए टिकट मांगा, लेकिन सुम्बुल राना पर सहमति बनी। पुत्रवधू ने मीरापुर का चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा।

मीरापुर की नवनिर्वाचित विधायक मिथलेश पाल ने दूसरी बार राना परिवार को हराने में कामयाबी हासिल की। दोनों बार उपचुनाव में मुकाबला हुआ।

विधायक मिथलेश पाल और पूर्व सांसद कादिर राना रालोद में लंबे समय तक रहे। 2007 में रालोद ने मिथलेश को शहर पालिकाध्यक्ष पद का चुनाव लड़ाया। सपा के टिकट पर राशिद सिद्दीकी चुनाव लड़ रहे थे।

कादिर राना चुनाव में मिथलेश पाल के लिए प्रचार कर रहे थे। इस दौरान सपा समर्थक मुजफ्फर राना की हत्या कर दी गई, जिसका आरोप कादिर राना पर लगा था। इस चुनाव में मिथलेश हार गईं। कादिर राना 2009 में बसपा में शामिल हुए।

मोरना सीट के उपचुनाव में मिथलेश पाल का मुकाबला कादिर राना के भाई नूर सलीम राना से हुआ। मिथलेश ने नूर सलीम राना को हरा दिया और विधानसभा पहुंचीं। इस बार मीरापुर के उपचुनाव में मिथलेश पाल का मुकाबला कादिर राना की पुत्रवधू सुम्बुल राना से हुआ, लेकिन इस बार भी जीत मिथलेश के हिस्से में ही आई।