नई दिल्ली. आज हम आपको एक कहानी बताएंगे। मुश्किल से तीन मिनट की ये कहानी आपको भारतीय इतिहास के कुछ पन्नों से रूबरू कराएगी। ये कहानी है दिल्ली की रायसीना पहाड़ियों पर बसे राष्ट्रपति भवन की।

यह महज एक इमारत नहीं जीता जागता उदाहरण है उस स्वाधीनता की लड़ाई का, जिसमें हमारे और आपके न जाने कितने अपनों ने खुद को बलिदान कर दिया। ये गवाह है आजादी की लड़ाई का। ये गवाह है देश की आजादी और गणतंत्र का।

तो आइए बिना देरी किए कहानी पर आते हैं… जानते हैं कि ब्रिटिश हुकुमत के वायसराय के लिए खासतौर पर बने इस महल को कैसे तैयार किया गया? कैसे यह आजादी के बाद राष्ट्रपति भवन के रूप में तब्दील हुआ?

बात 1911 की है। अंग्रेजों ने कोलकाता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला किया। तब वह दिल्ली में एक ऐसी इमारत बनाना चाहते थे, जो आने वाले कई सालों तक एक मिसाल बने। अंग्रेजों ने इसके लिए रायसीना की पहाड़ियों को चुना। यहां उन्होंने वायसराय के लिए एक शानदार इमारत बनाने का फैसला किया।

इस इमारत का नक्शा तब के मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने तैयार किया। लुटियंस ने हर्बट बेकर को 14 जून, 1912 को इस आलीशान इमारत का नक्शा बनाकर भेजा। जगह मिल गई। नक्शा तैयार हो गया और अब अंग्रेजों ने काम शुरू कर दिया। सबसे पहले 1911 से 1916 के बीच ब्रिटिश हुकुमत ने रायसीना और मालचा गांवों के 300 लोगों की करीब चार हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया।

वायसराय के लिए महल को चार साल के अंदर तैयार करने की योजना थी, लेकिन जब शुरू हुआ तो इसे बनने में 17 साल लग गए। 1912 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1929 में खत्म हुआ। राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट बताती है कि इस इमारत बनाने में करीब 70 करोड़ ईंटों और 30 लाख पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। 29 हजार से ज्यादा कारीगर इसके लिए लगाए गए थे। सभी ने मिलकर इसमें 340 कमरे तैयार किए।

उस वक्त इसके निर्माण में 1 करोड़ 40 लाख रुपये खर्च हुए थे। राष्ट्रपति भवन में प्राचीन भारतीय शैली, मुगल शैली और पश्चिमी शैली की झलक देखने को मिलती है। राष्ट्रपति भवन का गुंबद इस तरह से बनाया गया कि ये दूर से ही नजर आता है।

1929 में जब ये आलीशान इमारत बनकर तैयार हुई तब भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन अपनी पत्नी के साथ इसमें पहुंचे। वह इसे देखकर चौंक गए। कहा जाता है कि उन्होंने इतनी भव्य इमरात को पूरी तरह से देखने के लिए हफ्ते भर का समय लिया। माउंटबेटन दूसरे नेताओं और अधिकारियों से यहीं मुलाकात करते थे।

जब आजादी का आंदोलन तेज हुआ और अपने अंतिम चरण में पहुंचा तो इसी इमारत में आजादी की इबारत लिखी गई। 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के साथ ही वायसराय हाउस भी नए युग में पहुंच गया। आजादी के बाद दो साल तक ये इमारत गर्वमेंट हाउस के नाम से जानी जाती रही।

आजादी के बाद देश के पहले गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को रहने के लिए यही महलनुमा इमारत मिली। वह इसकी भव्यता और शानो-शौकत से परेशान हो गए। राजगोपालाचारी ने कुछ दिन बाद ही यहां से जाने का मन बना लिया, लेकिन प्रोटोकॉल के हिसाब से यह मुमकिन नहीं हो पाया। तब वह इसमें रहने की बजाय गेस्ट रूम में रहने लगे।

26 जनवरी, 1950 को भारत गणतंत्र बना और देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद बनाए गए। 1950 में गर्वमेंट हाउस को राष्ट्रपति भवन बदल दिया गया। राजेंद्र प्रसाद यहां रहने आए, लेकिन वह भी राष्ट्रपति भवन की शानो-शौकत को अपना नहीं पाए। उन्होंने भी राजगोपालाचारी की परंपरा को जारी रखते हुए गेस्टरूम में रहने का फैसला लिया। गेस्टरूम में रहने की परंपरा आज भी कायम है।

राष्ट्रपति भवन (तब के वायसराय महल) को बनाने में भारत की प्राचीन शैली, पाश्चात्य शैली और मुगल शैली का प्रयोग किया गया। इसके खंभों में घंटियों को उकेरा गया है। यह विचार कर्नाटक के मुदाबिदरी नामक स्थान पर स्थित एक जैन मंदिर से प्राप्त हुआ है।

राष्ट्रपति भवन में एक हॉल है। इसका नाम दरबार रखा गया है। इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। इसे तरह-तरह के रंगीन पत्थरों से सजाया गया है। इस हॉल में दो टन का झूमर लगा है। इसके ठीक ऊपर राष्ट्रपति भवन का मुख्य गुंबद है।

दरबार हॉल की दीवारें ब्रिटिश हुकूमत से लेकर आजाद भारत के बदलाव की गवाह रही हैं। ये हॉल राष्ट्रपति भवन की सबसे खास जगह है। इसी दरबार हॉल में 15 अगस्त, 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को शपथ दिलाई थी। इसी हॉल में 26 जनवरी, 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने शपथ ली थी। इसके बाद इसी हॉल में इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक ने अपने पद की शपथ ली थी।

दरबार हॉल के बगल में एक दूसरा हॉल है। इसे अशोका हॉल नाम दिया गया है। ब्रिटिश हुकूमत के वक्त में ये शाही नृत्य कक्ष हुआ करता था। इसकी दीवारें और छत की खूबसूरती देखते ही बनती है। हॉल की एक-एक चीज को बहुत ही बारीकी से तराशा गया है। अब राष्ट्रपति इसी कक्ष में आधिकारिक बैठकें करते हैं।

दरबार और अशोका के बाद अब आते हैं बैंक्वेट हॉल पर। राष्ट्रपति भवन के बैंक्वेट हॉल में कई फीट लंबी डाइनिंग टेबल लगी है, जिस पर एक साथ 104 लोग बैठकर खाना खा सकते हैं। खास बात ये है कि इस हॉल के बाईं ओर एक खास तरह की लाइट लगी है, जो यहां मौजूद बटलर को सिग्नल देता है कि खाना कब सर्व करना है, कब प्लेटें हटानी और लगानी हैं।

यही नहीं, जब एकसाथ कई लोग यहां खाना खाते हैं तो कौन शाकाहारी है और कौन मांसाहारी, ये जानने के लिए हर शाकाहारी के सामने एक गुलाब रखा होता है। राष्ट्रपति भवन में खाना बनाने वालों की भी खास ट्रेनिंग होती है। यहां कई साल तक बतौर सेफ काम करने वाले मचींद्र कस्तूरे ने मीडिया को इसकी जानकारी दी है। वह बताते हैं, ‘राष्ट्रपति भवन में आने वाले मेहमानों की पसंद-नापसंद और एलर्जी के बारे में पहले ही नोट आ जाता है। कई बार तो किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के आने से एक महीने पहले ही उनके डाइट की पूरी जानकारी मिल जाती है। मसलन उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं? उसी हिसाब से यहां का स्टाफ पहले से ही तैयारी करता है।’

हॉल के बाद अब बात करते हैं राष्ट्रपति भवन की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक मुगल गार्डन की। 15 एकड़ में फैले इस गार्डन में दुनियाभर के फूल आपको देखने को मिल जाएंगे। ये फरवरी से मार्च तक आम लोगों के लिए खुलता है।

पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से लेकर रामनाथ कोविंद तक 14 राष्ट्रपति यहां रह चुके हैं।
पहले राजेंद्र प्रसाद चाहते थे कि हर राष्ट्रपति के हाथ से बनी तस्वीरें यहां लगाई जाएं, तब से इस परंपरा को निभाया जा रहा है। बैंक्वेट हॉल में सभी पूर्व राष्ट्रपति की पेंटिंग देखी जा सकती है।
दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन टीचर थे। उन्होंने यहां की लाइब्रेरी में कई अच्छी किताबों का कलेक्शन किया।
जाकिर हुसैन को गुलाब के फूलों से बहुत प्यार था। आज राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में गुलाब की 100 से ज्यादा किस्में हैं।

पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमन ने राष्ट्रपति भवन में एक संग्रहालय बनवाया। इसमें चांदी का 640 किलो को वो सिंघासन भी रखा है, जिस पर ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम बैठा करते थे। म्यूजियम में सूरजमुखी का एक फूल भी रखा है, जो महात्मा गांधी के पार्थिव शरीर पर चढ़ाया गया था।
पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अपने कार्यकाल में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का प्लांट लगवाया।
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति भवन का एक कोना बच्चों के नाम करके गए थे। इसे चिल्ड्रेन गैलरी कहा जाता है, जिसमें बच्चों की बनाई कलाकृतियां हैं।
देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं प्रतिभा पाटिल ने रोशनी परियोजना शुरू की थी।