मुज़फ़्फ़रनगर. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इस ज़िले की सभी छह सीटों पर कब्ज़ा किया. इसलिए मुज़फ़्फ़रनगर में बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा और रालोद ने मिलकर नया समीकरण बनाया है जिसके तहत ज़िले की 5 विधानसभा सीटों पर किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया है, जबकि एक सीट पर उम्मीदवार का एलान होना अभी बाकी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में इस बार कांटे की टक्कर है. बीजेपी को मात देने के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने इस बार काफी सोच समझकर उम्मीदवार उतारे हैं. इसके पीछे वजह है मुज़फ़्फ़रनगर में हुए दंगों के बाद मतदाताओं का सांप्रदायिक विभाजन. मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में क़रीब 40 फ़ीसद मुस्लिम आबादी है.
“मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के बाद हिंदू-मुसलमान समुदाय के बीच खाई बढ़ गई, साथ ही इसके बाद के चुनावों में वोटों का ध्रुवीकरण भी चरम पर पहुंच गया. जो जाट कभी समाजवादी पार्टी और रालोद को वोट दिया करते थे उन्होंने दंगे के बाद एकमुश्त बीजेपी को वोट दिया.”इस चुनाव में भी बीजेपी जीत के सिलसिले को दोहराना चाहती है और इसके लिए पांच सीटों पर उम्मीदवारों का एलान भी कर कर दिया गया है. बीजेपी ने भी सभी पांच सीटों पर हिंदू उम्मीदवारों को उतारा है. मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में 6 विधानसभा सीट हैं जिनमें बुढ़ाना, चरथावल, पुरकाजी, मुज़फ़्फ़रनगर, खतौली और मीरापुर शामिल हैं. 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगे से पहले इन विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को मुसलमान वोटों के साथ बड़ी संख्या में हिंदू वोट भी मिलते थे जिसमें जाट, गुर्जर के अलावा कई अन्य जातियां भी शामिल थीं.
2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के दो, राष्ट्रीय लोकदल के एक और बहुजन समाज पार्टी के तीन उम्मीदवारों को जीत मिली थी. मतलब, बीजेपी का यहां साल 2012 में खाता भी नहीं खुला था. 2013 के दंगे के बाद स्थिति पलट गई. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी पार्टियों का पत्ता साफ़ कर दिया. इस नतीजे से समाजवादी पार्टी और रालोद ने सबक लिया और बदले हुए हालात में अपनी रणनीति भी बदली है. स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अनिल रॉयल कहते हैं, “2013 में मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के बाद जो स्थिति ख़राब हुई थी उसमें किसान आंदोलन के बाद परिवर्तन आया है. हिंदू-मुसलमान के बीच जो दूरियां बनी थीं वो कम हुई हैं. युवा जाटों में राष्ट्रीय लोकदल के प्रति आकर्षण बढ़ा है. जाटों में आधे-आधे का बंटवारा है. पेंशन, वेतन उठाने वाले ‘शहरी’ जाट बीजेपी के साथ हैं वहीं खेतीबाड़ी करने वाले जाट किसान आंदोलन के बाद सपा और रालोद के क़रीब आए हैं.”
“ज़िले में मुस्लिम वोटर सपा-रालोद गठबंधन के साथ है. ज़िले की कोई भी सीट सिर्फ़ मुस्लिम वोटों से नहीं जीती जा सकती. ज़िले की कोई भी सीट जीतने के लिए 15 से 20 हज़ार हिंदू वोट भी चाहिए. यही कारण है कि सपा-रालोद गठबंधन ने हिंदू प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है ताकि वो मुस्लिम वोट के साथ हिंदू वोट भी अपनी तरफ़ खींच सकें”. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मीरापुर विधानसभा से लियाक़त अली को उम्मीदवार बनाया था. लियाकत अली बीजेपी के उम्मीदवार अवतार सिंह भड़ाना से सिर्फ़ 193 वोट से हार गए थे. नज़दीकी हार के बाद भी लियाक़त अली को सपा-रालोद गठबंधन ने टिकट नहीं दिया.
जबकि लियाक़त अली इलाक़े के दमदार मुसलमान नेता हैं. लियाक़त अली के टिकट कटने की वजह साफ़ दिखती है. सपा-रालोद गठबंधन ने इस बार चंदन चौहान को मैदान में उतारा है. टिकट कटने से हताश लियाक़त अली लखनऊ पहुंच गए हैं. लियाक़त अली के साथ लखनऊ में मौजूद उनके बेटे अंजुम कमाल ने बीबीसी से बातचीत में बताया, “मीरापुर विधानसभा में क़रीब एक लाख 40 हज़ार मुस्लिम वोट हैं. हमने मेहनत से दस हज़ार नए मतदाता अपने पक्ष में तैयार किए थे. हमारे कार्यकर्ता बहुत गुस्से में हैं. हमारी टिकट कटने से मुस्लिम समाज में काफ़ी नाराज़गी है. गठबंधन ने जिस उम्मीदवार को टिकट दिया है वो पिछली बार खतौली से क़रीब 31 हज़ार वोट से हारा था.”
टिकट न मिलने से बौखलाए लियाक़त अली मीरापुर सीट से निर्दलीय चुनाव भी लड़ सकते हैं. उनके बेटे अंजुम कमाल का कहना है, “हमने निर्वाचन कार्यालय से पर्चा भी ख़रीद लिया है, हमारे रास्ते खुले हैं.”लियाक़त अली ने बीबीसी से कहा, “हमारे साथ ज़ुल्म हुआ है. मुज़फ़्फ़रनगर की हर सीट पर एक लाख के क़रीब मुसलमान हैं. क्या हमारा एक सीट पर भी हक़ नहीं बनता?” क़ादिर राणा टिकट के चलते बहुजन समाज पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में आए थे. क़ादिर राणा ने बीबीसी से बताया, “हमें आश्वासन दिया गया था. मीरापुर से उम्मीदवार बदल सकता है. हमें अभी रुकने के लिए कहा गया है.”
“क़ादिर राणा मुज़फ़्फ़रनगर में बड़े नेता माने जाते हैं. टिकट की उम्मीद में समाजवादी पार्टी ज्वाइन की थी, लेकिन टिकट नहीं मिली.” चरथावल विधानसभा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विजय कुमार कश्यप ने सपा के मुकेश चौधरी को क़रीब 23 हज़ार मतों से हराया था. “पंकज मलिक के पिता हरेंद्र मलिक सपा के पूर्व सांसद रहे हैं. जाटों के बड़े नेता हैं. यहां बहुजन समाज पार्टी कितने मुस्लिम वोट पाती है, उससे गठबंधन के उम्मीदवार की जीत हार तय होगी.” नूर सलीम राणा ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की टिकट से क़रीब 52 हजार मतों से जीत दर्ज की थी. कुछ समय पहले टिकट की उम्मीद में बसपा छोड़कर राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हुए थे. नूर सलीम राणा ने बताया, “मैं चरथावल सीट से दावेदार था. जब मैं राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हुआ था तो सौ प्रतिशत लग रहा था कि मुझे टिकट मिलेगी. मुझे टिकट नहीं मिलने से मुस्लिम समाज में नाराज़गी है. गठबंधन का धर्म निभाते हुए अपने समाज को मनाने की कोशिश में लगा हूं.”