मुजफ्फरनगर। इस बार के चुनाव में राजनीति से जुड़े कई परिवारों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। मुजफ्फरनगर सदर सीट पर पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप के परिवार ने ताकत झोंक दी है। कैराना का चुनाव हुकुम सिंह और मुनव्वर हसन के परिवार की प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा सवाल बन गया है। पुरकाजी के मुर्तजा परिवार के सलमान सईद इस बार बसपा के टिकट पर चरथावल से उम्मीदवार हैं। पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक परिवार के लिए भी चरथावल का चुनाव भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेगा।
पुरकाजी का मुर्तजा परिवार हर चुनाव में मौजूदगी दिखाता है। 1952 में सईद मुर्तजा पहला चुनाव लड़े थे। 1969 में पहली बार बीकेडी से जीते। 1977 में सांसद बने। उनके बेटे सईदुज्जमां 1980 में पहला चुनाव लड़े और 1980 में पहली बार जीते। 1999 में सईदुज्जमां सांसद रहे। वर्तमान मेें तीसरी पीढ़ी के सलमान सईद बसपा के टिकट पर चरथावल से चुनाव लड़ रहे हैं।
पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप का परिवार पिछले साढ़े पांच दशक से राजनीति में सक्रिय है। 1967 में विष्णु स्वरूप विधायक बने थे। 1974 में कांग्रेस के टिकट पर चितरंजन स्वरूप विधानसभा पहुंचे। 2002 और 2012 में सपा के टिकट पर जीते और मंत्री बनें। इस बार रालोद के टिकट पर चितरंजन का बेटा सौरभ स्वरूप उर्फ बंटी चुनाव मैदान में है।
काजीखेड़ा के रहने वाले पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक के परिवार ने कई विधानसभा बदली है। 1985 में हरेंद्र खतौली से विधायक बने। इसके बाद वह 1989 और 1991 में बघरा से चुनाव लड़े और जीते। हरेंद्र का बेटा पंकज मलिक 2007 में बघरा और इसके बाद 2012 में शामली से विधायक बना। परिवार सीट बदलकर इस बार चरथावल से चुनाव मैदान में है।
कैराना की सियासत में हुकुम सिंह परिवार की अनदेखी नहीं की जा सकती। 1974 में हुकुम सिंह कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव जीते थे। 1977 में जनता पार्टी के बशीर अहमद से हार गए। लेकिन हुकुम सिंह 1980 में जनता एस के टिकट पर फिर जीत गए। दिल्ली और लखनऊ में हुकुम सिंह छाए रहे। अब हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह पिता की विरासत पर अपने समीकरण देख रही हैं।
कांग्रेस के टिकट पर 1984 में अख्तर हसन कैराना से सांसद चुने गए थे। इसके सात साल बाद उनके बेटे जनता दल के टिकट पर उनके बेटे मुनव्वर हसन कैराना से पहली बार विधायक बने। 1993 में भी मुनव्वर जीते। 1996 में मुनव्वर हसन सांसद चुने गए थे। 2004 में मुनव्वर हसन मुजफ्फरनगर से सांसद बने। 2007 में मुनव्वर के भाई अरशद रालोद के टिकट पर चुनाव हार गए थे। मुनव्वर की सडक़ हादसे में मौत के बाद उनकी पत्नी तबस्सुम बेगम 2009 में सांसद चुनी गई थी। उपचुनाव में भी वह सांसद रहीं। उनका बेटा नाहिद हसन विधायक है। परिवार की तीसरी पीढ़ी की इकरा हसन भी प्रचार में जुटी है।
थानाभवन से चुनाव लड़ रहे पूर्व चेयरमैन अशरफ अली पुराने राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके ताऊ गय्यूर अली कैराना से 1967 में सांसद रहे थे। 1971 में वह चुनाव हार गए थे। इस बार राव राफे खां से टिकट की जंग जीतकर चुनाव लड़ रहे अशरफ अली के परिवार की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
नारायण सिंह की तीसरी पीढ़ी
मीरापुर से रालोद के टिकट पर चंदन चौहान चुनाव लड़ रहे हैं। उनके दादा नारायण सिंह सूबे के डिप्टी सीएम रहे हैं। चंदन के पिता संजय चौहान बिजनौर से सांसद रहे और मोरना से विधायक भी रहे। इस बार इस परिवार की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।