नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के विरोध में शुक्रवार को नौवें दिन भी किसान सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं। किसानों का कहना है कि जब तक सरकार इन कानूनों को रद्द नहीं करती आंदोलन जारी रहेगा। अपनी मांगे पूरी कराने के लिए वह किसी भी प्रकार से कानून का उल्लंघन नहीं करेंगे यह आंदोलन इसी प्रकार शांतीपूर्वक चलता रहेगा। भले ही कई महीनों तक उन्हें यहां रहना पड़े।
अमृतसर किसान संगठन के रवनीत सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पारित तीनों नए कृषि कानून किसान विरोधी हैं। इनसे किसानों का भला नहीं होगा, बल्कि उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इस समय करीब एक लाख किसान सिंघु बॉर्डर पर मौजूद हैं। देश के कई राज्यों से उनको समर्थन मिल रहा है। यह एक देशव्यापी आंदोलन बन रहा है। उन्होंने कहा कि फिलहाल किसानों का दिल्ली कूच करने का इरादा नहीं हैं। क्योकि सभी किसान कानून का पालन करते हुए ही उनकी मांगों को पूरी कराना चाहते हैं।
किसान नेताओं का कहना था कि वह 6 महीने की रसद लेकर आएं हैं। इसलिए जब तक सरकार कानून वापस नहीं लेती। किसान इसी तरह बॉर्डर पर जमे रहेंगे। रवनीत ने कहा कि शनिवार को किसान संगठनों और सरकार के बीच होने वाली बैठक में जो निर्णय आएगा। उसके हिसाब से ही आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
अमृतसर किसान यूनियन के प्रधान बलवीर सिंह ने बताया कि नए कृषि बिल में कंट्रैक्ट फार्मिंग वाले कानून से किसान की जमीन का मालिकाना हक खतरे में पड़ जाएगा। इससे कंट्रैक्ट और कंपनियों के बीच कर्ज का मकड़जाल फैलेगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस कानून में विवादों के निपटारा के लिए एसडीएम कोर्ट को ही अखिरी विकल्प बनाया है। उनकी मांग है कि उन्हें उच्च अदालतों में अपील का अधिकार मिलना चाहिए। नए कृषि कानूनों में काफी कमिया हैं। इसलिए यह वापस होने चाहिए।
कई महीनों पहले बनाई गई थी आंदोलन की रूपरेखा
किसान नेताओं ने कहा कि इस आंदोलन की रूपरेखा महीनों पहले बना ली गई थी। इसके लिए घर-घर जाकर लोगों को जागरूक किया गया था। साथ ही उन्हें इन नए अध्यादेश के विषय में भी समझाया गया था।