मुरादाबाद। रामगंगा नदी के पार के गांव में बाढ़ की बर्बादी होने की वजह से लोग अपने बेटे-बेटियों के रिश्ते करने से भी बचते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। रामगंगा पार के लोग अपनी मेहनत के बल पर तरक्की की राह पर दौड़ने लगे हैं। बीस साल पहले ठाकुरद्वारा के सुरजननगर से शादी होकर छोटे से गांव बमनिया पट्टी आईं पूनम रानी ने घूंघट को त्यागकर आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख दी। उनके साथ दस महिलाएं और भी रोजगार से जुड़ी हैं। महिलाओं को रोजगार से जोड़कर अपने पैरों पर खड़े करने में पूनम के पति खिलेंद्र सिंह भी इसमें मदद कर रहे हैं।

जनवरी 2019 में पूनम रानी ने सहारा अश्व कल्याण स्वयं सहायता समूह का गठन करके 15 हजार रुपये से अचार बनाने का काम शुरू कर दिया। उनके साथ दस महिलाएं और भी जुड़ी हैं। सभी ने एकजुट होकर घर में ही आम, आंवला, अदरक, मूली, गाजर, सब्जी और करेला का आचार बनाना शुरू किया। इस काम के लिए 15 हजार रुपये की धनराशि बहुत कम थी। इसलिए समूह ने एक लाख रुपये बैंक से कर्ज लेकर काम को बढ़ाया, लेकिन कोरोना ने उनके काम को चौपट कर दिया। पूनम के बच्चे भी अब बड़े हो चुके हैं। बेटी वर्निता बीएससी की छात्रा है।

बेटा जतिन बीफार्मा की पढ़ाई कर रहा है। पति की इलेक्ट्रिक के सामान की दुकान है। पूनम का पूरा फोकस अब गांव की महिलाओं को काम से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का है। पूनम को देखकर क्षेत्र की अन्य महिलाएं भी आत्मनिर्भर बनने की राह चलने लगी हैं। इस क्षेत्र में नए स्वयं सहायता समूहों का गठन हो रहा है।

वाट्सएप ग्रुप पर आता है ऑर्डर
अचार की मार्केटिंग में पूनम के पति खिलेंद्र सिंह का सहयोग रहता है। उन्होंने संपर्क करके गांवों की दुकानों पर अचार बतौर सैंपल रखवा दिए। उनके बिकने के बाद ऑर्डर मिलने शुरू हो गए।अब ऑर्डर देने के लिए दुकानदारों का एक वॉट्सऐप ग्रुप बना लिया है। ग्रुप के माध्यम से दुकानदार अपना ऑर्डर देते रहते हैं। आर्डर आते ही उनके आचार के डिब्बे पहुंचा दिए जाते हैं। आचार के काम का 75 हजार रुपये प्रति माह का उनका टर्नओवर है। एक किलो अचार करीब 200 रुपये का बिकता है। इनमें करीब 25 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। पूनम रानी ने बताया कि महिलाओं की मजदूरी देने के बाद 15 हजार रुपये प्रतिमाह बच जाते हैं। अब आचार के काम को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही हूं।