सीतापुर: आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है. आज के दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है. ऐसा ही एक मंदिर यूपी के सीतापुर के नैमिषारण्य तीर्थ स्थित कालीपीठ मंदिर में स्थापित है. खास बात यह है कि इस मंदिर में विराजमान मां धूमावती का दर्शन और पूजन नवरात्रि में केवल शनिवार के दिन ही किया जाता है. भक्त बाकी दिन माता के दर्शन नहीं कर सकते. ऐसे में आज माता धूमावती के दर्शन करने के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी हुई है. सुबह से ही दूरदराज से दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होने लगी है. श्रद्धालुओं ने माता के जयघोष से समूचे वातावरण को भक्तिमय कर दिया.

यूपी के सीतापुर में नैमिषारण्य के कालीपीठ में आज 6 महीने बाद मां धूमावती के कपाट खोले गए. श्रद्धालुओं ने मां धूमावती के दर्शन किए. आपको बता दें कि मां धूमावती के कपाट 6 माह बाद नवरात्रि में पड़ने वाले शनिवार को ही खुलते हैं. श्रद्धालु मां धूमावती को काले कपड़े में लौंग और काले तिल की पोटली बनाकर चढ़ाते हैं. गौरतलब हो कि भारत में दो स्थानों पर ही मां धूमावती के दर्शन होते हैं. पहला है मध्य प्रदेश के दतिया पीठ और कालीपीठ नैमिषारण्य में.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार मां पार्वती को भूख लगी तो उन्होंने महादेव से भोजन मांगा. भगवान शंकर समाधि में लीन होने की वजह से उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई.मां ने कई बार आवाज दी पर भोले की समाधि नहीं टूटी. इस पर माता ने गुस्से में महादेव को ही निगल लिया.चूंकि महादेव ने हलाहल विष का पान किया था, तो माता के शरीर से धुआं निकलने लगा. तभी से माता का नाम धूमावती पड़ गया. वहीं, पति को निगलने के कारण माता विधवा स्वरूप हो गईं. धूमावती का वैधव्य रूप है और उनके दर्शन करने से समस्त पीड़ाओं का नाश हो जाता है.

माता धूमावती के दर्शन का संयोग एक बार का ही है. आपको बता दें कि नवरात्रि के शनिवार को ही माता धूमावती के कपाट खोले जाते हैं. तभी उनके दर्शन संभव हैं. किवदंती है कि सौभाग्यवती महिलाओं को माता का दर्शन मना है. सुहागिनें माता के दर्शन नहीं करती हैं. ऐसा देवी के वैधव्य रूप के कारण है. मंदिर के पुजारी ने मां की महिमा का गुणगान करते हुए बताया कि दस महाविद्या उग्र देवी धूमावती देवी का स्वरूप विधवा का है.

इनका वाहन कौवा है. माता सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं. खुले केश उनके रूप को और भी भयंकर बना देते हैं. यही वजह है कि मां धूमावती के प्रतिदिन दर्शन न करने की परंपरा है. शनिवार को काले कपडे़ में काले तिल मां के चरणों में भेंट किये जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि मां के दर्शन कर मानचाहे फल की प्राप्ति होती है.