नई दिल्ली। भारत पहलवानों का देश रहा है. भारत में एक से बढ़कर एक पहलवान हैं जिन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है. आज हम आपको एक ऐसे पहलवान के बारे में बताएंगे जिसने अपनी लगन, जज्बे और कड़ी मेहनत से दुनिया के तमाम पहलवानों को धूल चटाई थी. ‘रुस्तम-ए-जमां’, ‘शेर-ए-पंजाब’ और ‘द ग्रेट गामा’ जैसे नामों से जाने वाले गामा पहलवान का आज (22 मई) 144वां जन्मदिन है. आइए आपको उनसे जुड़ी रोचक बाते बताते हैं.
कभी नहीं हारा कोई मुकाबला
गामा का जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर में हुआ था. इनके बचपन का नाम गुलाम मुहम्मद था. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय यानी साल 1947 के बाद गामा पहलवान भारत के नहीं बल्कि पाकिस्तान के हो गए. गामा पहलवान ने शुरुआत में कुश्ती के दांव-पेच पंजाब के मशहूर पहलवान माधो सिंह से सीखे थे. साल 1947 से पहले तक गामा पहलवान ने भारत का नाम पूरी दुनिया में ऊंचा किया. गामा अपने 52 साल के करियर में कभी कोई मुकाबला नहीं हारे.
दुनिया में अपने नाम का डंका बजाया
5 फुट 7 इंच के औसत हाइट वाले गामा पहलवान उस दौर में लगभग हर लंबे पहलवान को धूल चटाई थी. गामा पहलवान को रुस्तम-ए-हिन्द का खिताब भी मिला था. वो वर्ल्ड चैंपियन भी बने थे. गामा पहलवान की मृत्यु 23 मई 1960 को पाकिस्तान के लाहौर में हुई थी. वे लंबे वक्त से बीमार थे.
ऐसी थी गामा पहलवान की डाइट
गामा पहलवान डाइट में 6 देसी चिकन, 10 लीटर दूध, आधा किलो घी और बादाम का शरबत और 100 रोटी लेते थे और रोज 15 घंटे प्रैक्टिस करते थे. वे हर दिन 3000 बैठक और 1500 दंड किया करते थे. बताया जाता है कि गामा पहलवान ने एक भारी भरकम पत्थर को डंबल बनाया हुआ था. ‘The Wrestler’s Body: Identity and Ideology in North India’ नाम से किताब लिखने वाले जोसफ ऑल्टर ने इस बारे में अपनी किताब में भी विस्तार से बताया है. इसके अलावा वो रोज अपने गले से 54 किलो का पत्थर बांधकर 1 किलोमीटर तक भागा भी करते थे.