लखनऊ। आपके कोच के बारे में हम जानना चाहते हैं। जसपाल राणा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन उन्होंने आपका कैसे ध्यान रखा और उनका आपकी जिंदगी में प्रभाव क्या है?
मनु ने कहा कि मुझे लगता है कि यहां मौजूद काफी लोग जानते होंगे कि जसपाल राणा कौन हैं। वह खुद एक बहुत बड़े शूटर रह चुके हैं। वह काफी मेडल जीत चुके हैं, चाहे वह कॉमनवेल्थ गेम्स हो या एशियन गेम्स। मैं बहुत यंग थी जब उन्होंने मुझे सिखाना शुरू किया था। मेरा आत्मविश्वास उनसे आता है। मैं आज भी कहती हूं कि अगर मेरे कोच नहीं होते तो मेरा आत्मविश्वास बहुत कम होता।
पिछले साल ही मैंने दोबारा उनके साथ काम करना शुरू किया। कुछ लोग होते हैं जिन्हें देखकर आपका आत्मविश्वास आता है। किसी के लिए वह भाई होते हैं, किसी के लिए उनके माता पिता, मेरे लिए वह मेरे कोच हैं। जब भी उनको देखती हूं तो मुझे लगता है कि चाहे नतीजा कुछ भी हो, अच्छा हो बुरा हो, गोल्ड जीतूं या नहीं जीतूं वो सब संभाल लेंगे। हम दोनों का ऐसा बॉन्ड है। वो मेरे गॉड फादर हैं। मैं उनकी हर बात मानती हूं। वो कहते हैं ये मैच खेलना है तो खेलना है, ये मैच नहीं खेलना तो नहीं खेलती हूं। रोज छह बजे उठना है तो उठना है, रोज योगा करना है तो करना है तो मेरी उनसे इसी तरह की बॉन्डिंग है।
मनु ने इस सवाल पर कहा कि आप किसी भी प्रोफेशन में हो तो अपनी एक डायरी मेंटेन कीजिए। उससे आपको पता चलेगा कि आपने खुद को कितना मेंटेन किया है। जहां आपने अच्छा परफॉर्म किया है वहां आपने क्या क्या चीजें अच्छी की हैं। डायरी जरूर मेंटेन कीजिए। दूसरी चीज आपको फोकस प्रक्रिया पर करो। ये मत सोचो कि नतीजा क्या होगा। योगा करें। योगा में काफी ताकत है।
मनु ने कहा कि शूटिंग को लेकर एक गलतफहमी है कि सिर्फ खड़े होकर गोली चलाना है। आप जितना ज्यादा दिमागी तौर पर मजबूत होंगे उतना अच्छा परफॉर्म कर पाओगे। एकाग्रता बहुत जरूरी है। जब तक आप एकाग्र नहीं हो तब तक आप उस लेवल का प्रदर्शन नहीं कर पाओगे जिस लेवल तक आप ट्रेनिंग कर रहे हो।
आप बहुत सारे ओपन कॉम्पिटीशन लो। जैसे स्कूल की तरफ से ही आपके सामने बहुत सारे दर्शक को बैठा दिया जाए और उनके सामने मैच खेलना है तो आप फिर उसको फील कर पाओगे कि आपको कैसे खेलना है और क्या करना है। आप वैसे ट्रेनिंग करो जैसे कि मैच में कैसे करना है। मैंने भी वैसा ही किया है कि उस परिस्थिति के मुताबिक खुद की ट्रेनिंग करती हूं। रूटीन के मुताबिक काम करिए और किसी प्रतियोगिता में उसी रूटीन को फॉलो करें और किसी बाहरी चीज से डिस्ट्रैक्ट मत हो।
मनु ने कहा कि शुरू-शुरू में जब आपके पास लाइसेंस नहीं होता है तो या फिर उतना फाइनेंसली आप स्टेबल नहीं होते हो तो शूटर्स करते हैं कि किराए पर ले लेते हैं। आप मुझे कुछ समय के लिए मैं आपको इस तरीके से रीपे कर दूंगा या दूंगी। वैसे ही मैंने अपना पहला नेशनल खेला था किराए पर पिस्टल लेकर। वह पिस्टल विनीत सर की थी और वह अभी भी शूटिंग करते हैं। तो मैंने उनसे पिस्टल ली थी और नेशनल खेला था।
मुझे बकायदा ग्रिप तो बहुत दूर की बात है ये पता भी नहीं था कि ट्रिगर कितना अंदर होता है 10 मीटर और 25 मीटर में कितना फर्क होता है। वैसे ही मैंने वहां से शुरू किया था। धीरे-धीरे जब तक अपनी खुद की पिस्टल नहीं आई तब तक मैं संघर्ष करती रही इसमें ग्रिप नहीं बनी या ये नहीं हुआ। लेकिन मैंने सोचा कि जैसे-तैसे करके मैं चला लूंगी। आपके अदंर एक भूख होनी चाहिए कि कोई भी परिस्थिति आए तो भी मुझे ये करना है। अगर आप उस चीज को जारी रखते हैं तो कुछ भी कर सकते हैं।
मनु ने कहा कि आप बायोग्राफी पढ़िए। मैं अभी उसेन बोल्ट की बुक पढ़ रही हूं। मैंने देखा है कि वो हार कर जितनी प्रेरणी मिलती है वो जीत से नहीं मिलती। हारने की प्रेरणा बहुत मजबूत होती है। बोल्ट कितनी बार हारे लेकिन उन्होंने उससे प्रेरणा ली और आज देखिए कोई ऐसी प्रतियोगिता नहीं जिसने उन्होंने नहीं जीती हो।
टोक्यो ओलंपिक में आपकी शूटिंग इवेंट के दौरान पिस्टल खराब हो गया था। 14 मिनट ठीक होने में लग गए। ऐसे में आपको 36 मिनट में 44 शॉट लगाने थे। सवाल ये है कि आप उससे कैसे उबरीं?
मनु ने कहा कि टोक्यो ओलंपिक के बाद मैं दो महीने डिप्रेस थी। हर जगह मैं जानती थी जहां मैं गोल्ड जीतती हूं, सिल्वर-ब्रॉन्ज नहीं गोल्ड जीतती हूं, लेकिन मैं वहां पिस्टल की वजह से चूक गई। लेकिन लाइफ वहां खत्म थोड़ी हो गई। मैंने सोचा कि मैं फिर से वो मोमेंट क्रिएट कर लूंगी।
ओलंपिक के बाद एक महीने तक शूटिंग को देखा तक नहीं था। मोरल ये है कि अगर कभी कामयाबी न मिले तो इसको सोचकर हार नहीं मान लेनी चाहिए। आपको ये सोचना चाहिए कि मैं आगे भी कर सकती हूं। आपके लिए लाइफ में सबसे ज्यादा जरूरी होती है आपकी खुशी। अगर आप हार के बाद भी खुश होने की क्षमता रखते हैं तो आप वो मोमेंट आगे चलकर भी दोहरा सकते हैं।
मनु ने कहा कि बहुत ही फनी स्टोरी है। शूटिंग मुझे ऐसे मिली कि मैं क्लास बंक करती थी। इंग्लिश हिंदी सोशल साइंस बंक करती थी या फिर मुझे क्लास से बाहर कर दिया जाता था। जब मुझे क्लास से बाहर किया जाने वाला था तो मैं खुद ही बाहर चली जाती थी। स्कूल में ही शूटिंग रेंज खुली थी। जब भी मैं किसी को बताती थी कि मैं शूटिंग कर रही हूं तो दादी पूछती थीं कि कौन सी फिल्म की शूटिंग कर रही हो।
फिर मैं शूटिंग रेंज जाना शुरू कर दिया। फिर कोच ने ध्यान देना शुरू किया। मैं पेरेंट्स की बहुत आभारी हूं। उन्होंने कभी मुझे किसी चीज के लिए मना नहीं किया। अभी मैं वायलिस सीखना चाहती हूं। परसों ही मेरे लिए टीचर ढूंढा गया है। जब से नीरज जी ने मेडल जीता है तो काफी लोग स्पोर्ट्स के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। शूटिंग एक बहुत ही ट्रांसपेरेंट गेम है। इसमें ऐसा नहीं होता कि ज्यूरी किसी को जिता देंगे। तो इसलिए मैं इस खेल से ज्यादा जुड़ी।
ये जो स्पोर्ट्स हैं जूडो या कराटे वो इसलिए क्योंकि मेरी स्कूल में लड़ाई बहुत होती थी। मेरा भाई था तो मैं ये सबको कहती थी कि इसको किसी ने परेशान किया तो मैं छोड़ूंगी नहीं। तो सब ने कहा इस गुस्से को चैनलाइज किया। फिर वो सही जगह लगी।