उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के तीन विकल्प हैं। पहला विकल्प है समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके उसके द्वारा दी जाने वाली बमुश्किल तीस से 40 सीटों पर संतोष कर लेना। दूसरा विकल्प है येन केन प्रकारेण किसी तरह बसपा से गठबंधन करके इतनी या इससे कुछ ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना। तीसरा विकल्प है जैसी भी ही हालत हो सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ना या जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन करके सौ सीटें रालोद को देकर खुद तीन सौ पर मैदान में उतरना।

अब पहले विकल्प की संभावना इसलिए बेहद कम हो जाती है कि पिछला चुनाव कांग्रेस-सपा ने मिलकर लड़ा था और सपा को 47 व कांग्रेस को सात सीटें ही मिली थीं। क्योंकि दोनों का ही वोट एक-दूसरे को स्थानांतरित नहीं हुआ और अभी भी हो पाएगा इसकी कोई संभावना नहीं है। क्योंकि सपा-कांग्रेस का समान जनाधार मुस्लिम तो एक दूसरे के उम्मीदवार को मिल जाता है, लेकिन सपा का यादव और कांग्रेस का सवर्ण जनाधार एक-दूसरे के उम्मीदवार को न मिलकर अपने दल के उम्मीदवार की गैर-मौजूदगी में भाजपा को चला जाता है और भाजपा को इसका अतिरिक्त लाभ मिल जाता है जिससे उसकी उन सीटों पर जीत सुनिश्चित हो जाती है।

वैसे भी अखिलेश इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए बहुत उत्सुक नहीं हैं। दूसरा विकल्प कांग्रेस बसपा गठबंधन का है। यह प्रयोग 1996 में हो चुका है और तब बसपा ने तीन सौ सीटें लड़कर सिर्फ 67 सीटें और कांग्रेस ने 125 सीटें लड़कर महज 33 सीटें जीती थीं। वैसे भी मायावती घोषणा कर चुकी हैं कि इस बार वह किसी दल के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगी, इसलिए यह संभावना न के बराबर है। तीसरा विकल्प कांग्रेस और रालोद गठबंधन का है, लेकिन रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मिलकर चौधऱी चरण सिंह की सियासी विरासत को फिर से सहेजने में जुटे हैं और पंचायत चुनावों में दोनों ने मिलकर भाजपा को पछाड़ा है। ऐसे में रालोद कांग्रेस के साथ समझौता करेगा इसकी संभावना फिलहाल न के बराबर है। जानें यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अब कांग्रेस के पास क्या है विकल्प? नीचे क्लिक कर अगले पेज पर जाएं