अब कांग्रेस के पास सभी 403 सीटों पर अकेले या कुछ छोटे-छोटे दलों को मिलाकर चुनाव लड़ने का है। लेकिन क्या उसके पास आज के हालात में सभी सीटों पर ऐसे मजबूत उम्मीदवार हैं जो कम से कम चुनावी टक्कर दे सकें। अभी तो हाल यह है कि पार्टी ने 2017 में जो सात सीटें जीती थीं, उनमें से एक रायबरेली की विधायक अदिति सिंह भाजपा के साथ हैं और दो सीटें जिनमें एक रामपुर खास जहां से आराधना मिश्रा यानी मोना जो प्रमोद तिवारी की बेटी हैं, वह विधायक हैं और दूसरी सीट देवरिया से प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू विधायक हैं। चूंकि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं और पूरा चुनाव अभियान उनके जिम्मे है।
लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों, उपचुनावों और पंचायत चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी नेतृत्व प्रियंका गांधी को चुनाव में पार्टी का चेहरा बनाने का जोखिम नहीं उठाएगा और अजय लल्लू अभी तक पूरे प्रदेश का चेहरा नहीं बन सके हैं। तब अगर कांग्रेस बिना किसी नेता को आगे किए लड़ेगी तो कितने वोट और कितनी सीट पाएगी यह कहने में भी संकोच होता है।
लेकिन कोविड काल में राज्य सरकार की विफलता गंगा में तैरती और किनारों पर दफन लाशों, श्मशानों और कब्रिस्तानों पर लंबी कतारें, अस्पतालों में इलाज और ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते मरीजों और बेड के इंतजार में अस्पतालों के बाहर एंबुलेंसों की लाइनों में तड़पते मरीज और उनके परिजनों की भीड़, दवाई के लिए भटकते लोगों से ही साबित हो चुकी है। कांग्रेस को इसमें अपनी वापसी का अवसर दिख तो रहा है लेकिन संगठन और प्रदेश नेतृत्व की मौजूदा हालत की वजह से उसके कार्यकर्ताओं में मनोबल और विश्वास की कमी है। ऐसे में कांग्रेस को अगर उत्तर प्रदेश में कुछ भी कमाल करके प्रियंका गांधी की साख और राजनीतिक भविष्य बचाना है तो कुछ न कुछ करना होगा। इसके लिए सबसे जरूरी है उत्तर प्रदेश कांग्रेस का चेहरा बदलना और ऐसे नेता को आगे लाना जो न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं और बचे-खुचे जनाधार का मनोबल बढ़ा सके, उनमें जीत का विश्वास पैदा कर सके बल्कि चुनाव का समीकरण, व्याकरण और गणित भी बदल सके। भाजपा के नारों और विमर्श का जवाब देकर अपने पक्ष में नया विमर्श जिसे सियासी भाषा में नैरेटिव कहा जाता है, वो बना सके। जानें भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव में किन-किन नेताओं को दिखाए थे सीएम के सपने ओर उसके बाद क्या हुआ? क्या भाजपा की आपसी खींचतान दूसरे राजनीतिक दलों के लिए यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बन सकती है अवसर? नीचे क्लिक कर अगले पेज पर जाएं ओर पढें पूरी खबर