मेरठ: उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावो की रणभेरी बज चुकी है और सभी दलों ने एक-एक सीट पर जान झोंक रखी है. यूपी चुनाव के पहले चरण में 10 फरवरी को शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत और मेरठ समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोटिंग होगी और यह क्षेत्र सभी पार्टियों के लिए काफी अहम है. इन क्षेत्रों में मुख्य मुकाबला बीजेपी व सपा-आरएलडी गठबंधन के बीच है और माना जा रहा है कि दलित वोटर ही यह तय करेंगे कि पश्चिमी यूपी में कौन बाजी मारेगा.

संगीत सिंह सोम के लिए कम नहीं परेशानियां
भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में जो महत्व योगी आदित्यनाथ का है, वही राज्य के पश्चिमी इलाके में उसके तेज तर्रार नेता संगीत सिंह सोम का है. मेरठ जिले के सरधना विधान सभा क्षेत्र से दो बार विधायक और इस बार फिर से चुनाव मैदान में उतरे सोम की छवि योगी की तरह ही कट्टर हिंदूवादी नेता की है और संयोग से इस बार उनकी भी परेशानियां कम नहीं हैं. कारण, चुनावों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, जिसके लिए वह जाने जाते हैं, जातियों की गोलबंदी को पूरी तरह भेद नहीं पा रहा.

सरधना सीट का जातीय समीकरण
मेरठ जिले में लेकिन मुजफ्फरनगर लोक सभा क्षेत्र में आने वाले सरधना विधान सभा क्षेत्र में मुस्लिम (करीब 20 फीसदी) और दलित मतदाता (करीब 16 फीसदी) सबसे ज्यादा संख्या में माने जाते हैं. इसके बाद राजपूत, गुर्जर, जाट, ब्राह्मण और अन्य पिछड़ी जातियां हैं. संगीत सोम राजपूत समुदाय से हैं. उनके सामने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन की ओर से अतुल प्रधान, बहुजन समाज पार्टी के संजीव धामा और कांग्रेस के सैयद रेहानुदीन उम्मीदवार हैं. प्रधान गुर्जर समाज से हैं और पिछले दो चुनाव में लगातार सोम से हारे हैं.

क्या बसपा के साथ जाएंगे दलित वोटर्स?
मेरठ से लगभग 25 किमी दूर सरधना तहसील का अलीपुर गांव दलित बाहुल्य है. गांव के ज्यादातर लोग मानते हैं कि दलित समुदाय के एक वर्ग ने पिछले चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को वोट दिया था. लेकिन, अब वह मान रहे हैं कि वोट में विभाजन के चलते बसपा प्रमुख मायावती की राजनीतिक हैसियत कम हुई है और यह समाज के भविष्य के लिए ठीक नहीं है. बसपा के उम्मीदवार संजीव धामा जाट समुदाय से हैं. गांव में दलित समुदाय के एक पंचायत सदस्य ने कहा, ‘उम्मीदवार ज्यादा मायने नहीं रखता, हमें इस बार बसपा का वोट प्रतिशत बढ़ाना है.’ उन्होंने बताया कि विधान सभा क्षेत्र में ज्यादा आबादी मायावती के कट्टर समर्थक समझे जाने वाले जाटव समुदाय की है. खटीक, पासी व वाल्मीकि कम हैं.

भाजपा और सपा के बीच कड़ी टक्कर
भाजपा को जिन समुदायों का पूरा समर्थन मिल रहा है उनमें राजपूत, ब्राह्मण और वैश्य प्रमुख हैं. इसी तरह आरएलडी समर्थित सपा के उम्मीदवार को मुस्लिम, जाट और गुर्जर समुदाय का अच्छा खासा समर्थन हासिल है. अन्य पिछड़ा वर्ग में पाल, कश्यप और सैनी अच्छी संख्या में हैं और माना जा रहा है कि वह किसी एक दल के साथ नहीं हैं. कांग्रेस के रेहानुददीन और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के जीशान आलम भी मैदान में हैं पर दोनों बहुत प्रभावी नहीं माने जा रहे.

क्या बीजेपी की बढ़ने वाली है मुश्किल?
अलीपुर से ही लगा हुआ गांव है कुलंजन, जो मुस्लिम बाहुल्य है. एक घर के बाहर ही हुक्का गुड़गुड़ा रहे कुछ लोग आपसी चर्चा में व्यस्त हैं, लेकिन चुनावी माहौल पर बात नहीं करना चाहते. बहुत कुरेदने पर एक ने महाभारत और रामायण का उदाहरण देकर टिप्पणी की कि ‘वहां भी अंत में 20 फीसदी वाले ही जीते थे.’ उनका आशय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अस्सी फीसदी बनाम बीस फीसदी वाले बयान से था.

सरधना तहसील में पदस्थ एक अधिकारी ने बताया कि कुछ मुस्लिम नेताओं के बयान पर विवाद के बाद इलाके में प्रभावशाली मुस्लिम परिवारों की तरफ से मीडिया के साथ बातचीत को लेकर एक अघोषित पाबंदी लगाई गई है. उन्होंने बताया कि गठबंधन (सपा-रालोद) के नेताओं को भी यह परोक्ष संदेश है कि वे मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में प्रचार से परहेज करें.

संगीत सोम को पसंद और नापसंद करने वाले दोनों
अपने 200 साल पुराने ऐतिहासिक रोमन कैथोलिक चर्च के लिए विख्यात सरधना में संगीत सिंह सोम को पसंद और नापसंद करने वाले दोनों हैं. मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था और तब से ही वह अपने मुस्लिम विरोधी बयानों के लिए एक वर्ग की पसंद बने हुए हैं.

पिछले साल सितंबर में एक पत्रकार वार्ता में उन्होंने घोषणा की थी कि उत्तर प्रदेश में जहां जहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं वहां भाजपा फिर से मंदिर बनाएगी. लेकिन, विधान सभा क्षेत्र में उन्हें पसंद न करने वालों का आरोप था कि लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद सोम ने लोगों से मिलना जुलना और उनकी समस्याओं के बारे में सुनना बंद कर दिया.

संगीत सोम के मुकाबले प्रधान को विनम्र और व्यावहारिक मानने वालों का दावा था कि लगातार चुनाव हारने की वजह से इस बार अतुल प्रधान के प्रति एक बड़े वर्ग की सहानुभूति भी है. इसके अलावा इलाके के किसान, चाहे वह जिस भी समुदाय से हों, खुलकर भाजपा के पक्ष में बोलने से परहेज कर रहे हैं.

सरकार के काम से लोग प्रभावित
सोम को हिंदू समुदाय में उनकी ‘दबंग नेता’ वाली छवि के अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का फायदा भी मिल रहा है. सरधना में ऐसे लोग भी मिले जो सोम के व्यवहार से नाराज थे पर उनका कहना था कि वह भाजपा को नहीं, योगी को वोट देंगे क्योंकि उन्होंने ‘गुंडागर्दी’ खत्म कर दी है. दलित व पिछड़ा वर्ग के एक तबके में केंद्र व राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के चलते भी भाजपा के प्रति सहानुभूति है.

दलित समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण
अलीपुर ग्राम पंचायत के सदस्य का कहना था कि इसी वजह से दलित समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण हो गया है. ऐसे में बीजेपी के संगीत सिंह सोम और सपा प्रत्याशी अतुल प्रधान, दोनों ही उस पर डोरे डाल रहे हैं.

पश्चिमी यूपी के 15 जिलों में मुस्लिम वोटर्स हैं अहम
सरधना का चुनावी मूड मेरठ और मुजफ्फरनगर जैसे उन विधान सभा क्षेत्रों के लिए एक बानगी है, जहां मुस्लिम समुदाय सबसे बड़ा मतदाता वर्ग है. एक अनुमान के मुताबिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 15 जिले ऐसे हैं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद अन्य समुदायों की तुलना में अधिक है.

हालांकि, मेरठ जिला न्यायालय में वकालत करने वाले युवा वकील शक्ति सिंह और दीपक तोमर का मानना था कि जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कम है वहां भी भाजपा को बहुत फायदा नहीं हो रहा. उसका मुख्य कारण, उनके मुताबिक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण न हो पाना और किसान वर्ग, चाहे वह जिस भी जाति से हो, की नाराजगी है. उनका आकलन था, कि मेरठ कैंट जैसे शहरी विधान सभा क्षेत्र, जहां मुस्लिम मतदाता कम हैं और भाजपा का समर्थक वर्ग ब्राह्मण, वैश्य व राजपूत अच्छी संख्या में हैं, वहां भाजपा को निश्चित ही फायदा हो रहा है.