गुजरात! बीजेपी के मुख्यालय कमलम में जब केंद्रीय नेतृत्व ने नए मुख्यमंत्री के तौर पर भूपेंद्र पटेल के नाम की घोषणा की तो नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को जानने वाले लोगों के लिए भी यह नाम अचरज में डालने वाला था.
विजय रुपाणी के इस्तीफ़े के बाद गुजरात का नया मुख्यमंत्री कौन होगा, इसके लिए क़रीब छह नेताओं के नाम की चर्चा थी.
प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील के समर्थक तो इतनी जल्दबाज़ी में थे कि विजय रुपाणी के इस्तीफ़े से पहले ही विकीपीडिया पर उन्हें राज्य का 17वां मुख्यमंत्री लिख दिया गया. बात सीआर पाटील तक भी पहुंची होगी लिहाज़ा उन्होंने शनिवार की देर शाम वीडियो जारी करके कहा कि वे मुख्यमंत्री बनने की रेस में नहीं हैं.
रविवार को राज्य के कद्दावर नेता और उपमुख्यमंत्री रहे नितिन पटेल ने अपनी दावेदारी पर कहा, “मीडिया मेरे अनुभव को देखते हुए मेरा नाम चला रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि बीजेपी का आलाकमान जिसे तय करेगा वह मुख्यमंत्री होगा.”
इन दोनों के अलावा नरेंद्र मोदी के क़रीबी माने जाने वाले लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल का नाम भी चर्चाओं में था. साथ में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया, पुरुषोत्तम रूपाला और राज्य के पूर्व गृहमंत्री गोरधन झड़फिया जैसे दावेदारों के नाम भी उभर कर सामने आ रहे थे.
लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपनी कार्यशैली के मुताबिक ही उस आदमी को गुजरात की कमान सौंप दी है जिसके नाम का अनुमान कोई नहीं लगा पाया था और गुजरात से बाहर की दुनिया ने उनके बारे में पहले कभी नहीं सुना था.
गुजरात की कमान अब 59 साल के भूपेंद्र पटेल को थमाई गई है. भूपेंद्र पटेल पहली बार 2017 में विधायक चुने गए थे और पहली बार में ही उन्हें राज्य की सत्ता सौंप दी गई है.
राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हरि देसाई कहते हैं, “यही तो नरेंद्र मोदी के काम करने की शैली रही है, वे उस आदमी को तलाश लेते हैं जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. इसकी एक वजह यह भी है कि वे राज्य में किसी मज़बूत नेता को बढ़ाना नहीं चाहते हैं.”
पहली नज़र में यही लगता है कि बीजेपी ने राज्य में पाटीदार मतदाताओं के समूह को ख़ुश रखने के लिए भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया है. राज्य के पाटीदार मतदाताओं का बड़ा तबका भारतीय जनता पार्टी से पिछले कुछ समय से लगातार नाराज़ चल रहा है.
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल ने पाटीदार आंदोलन के ज़रिए विरोध का जो बिगुल बजाया था वो भले मुकाम तक नहीं पहुंचा हो, लेकिन उन विरोध प्रदर्शनों ने बीजेपी को सोचने पर विवश कर दिया था. पटेलों की नाराज़गी के चलते ही जो बीजेपी 150 सीट हासिल करने का दावा कर रही थी, वो महज़ 99 पर सिमट गई.
राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार और ‘नव गुजरात समय’ के ग्रुप एडिटर अजय उमट बताते हैं, “बीजेपी का आलाकमान इस नतीजे पर पहुंच चुका था कि पटेल समुदाय का नुकसान वह नहीं झेल सकता, यही वजह है कि रुपाणी को हटाया गया और एक पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया है.”
दरअसल गुजरात में पटेल समुदाय राजनीति तौर पर सबसे प्रभावी तबका है और यह परंपरागत तौर पर भारतीय जनता पार्टी का समर्थक रहा है. राज्य की 182 विधानसभा सीटों में 71 पर पटेल मतदाता निर्णायक हैं. वहीं इनमें 52 सीटों पर इनकी आबादी 20 प्रतिशत से ज़्यादा है.
यही वजह है कि गुजरात विधानसभा में सबसे ज़्यादा विधायक पटेल समुदाय से ही चुने जाते हैं. 2017 में ऐसे विधायकों की संख्या 44 थी जिसमें 28 विधायक बीजेपी के थे जबकि 23 विधायक कांग्रेस से चुने गए थे. 2012 के चुनाव में गुजरात में 47 विधायक पटेल थे. तब 36 पटेल विधायक बीजेपी के थे.
इस लिहाज़ से देखें तो पटेल समुदाय पर पार्टी की पकड़ ढीली पड़ने लगी थी. पटेल मतदाताओं की बीजेपी से नाराज़गी की दूसरी झलक तब मिली जब पिछले साल सूरत के स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ज़बरदस्त सेंध लगाते हुए और कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए 27 सीटें जीत लीं.
राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार अजय नायक बताते हैं, “पाटीदार समुदाय लगातार पटेल मुख्यमंत्री की मांग कर रहा था और आम आदमी पार्टी जिस तरह से पूरे प्रदेश में प्रवेश करने की तैयारी में जुटी है, उसने भी बीजेपी आलाकमान की आशंकाओं को बढ़ा दिया था. ऐसे में बीजेपी के सामने संकट पटेल नेतृत्व देने का ही था लेकिन यह भी तय था कि नितिन पटेल को मौका नहीं मिलने वाला था.”
नितिन पटेल को 2017 के बाद मुख्यमंत्री का सबसे बड़ा दावेदार माना गया था, लेकिन ऐन मौके पर अमित शाह ने विजय रुपाणी को आगे बढ़ाकर उनका पत्ता साफ़ कर दिया था. इसके बाद उनसे वित्त मंत्रालय भी ले लिया गया था लेकिन जब उन्होंने विरोध ज़ाहिर किया तो वित्त मंत्रालय तो उन्हें मिल गया, लेकिन मुख्यमंत्री पद की रेस से वे साइडलाइन होते गए.
बीजेपी पर पटेल मुख्यमंत्री देने का दबाव बढ़ रहा था, लेकिन मौजूदा विधानसभा में 28 बीजेपी विधायक पटेल ही हैं और दिलचस्प है कि बीजेपी के जिन छह नेताओं का नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर उभरा था, उनमें सभी पटेल समुदाय से आते हैं. सीआर पाटील भले महाराष्ट्र से हों और गुजरात में उनकी पहचान बाहरी नेता की हो, लेकिन गुजरात में जिन्हें पटेल कहा जाता है, वही महाराष्ट्र में पाटील कहलाते हैं.
इन नेताओं के सामने भूपेंद्र पटेल की पहचान राज्य में पटेल समुदाय के नेता के तौर पर नहीं रही है ना ही किसी मंत्रालय में काम करने का अनुभव ही उनके पास है, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि भूपेंद्र पटेल ने किस तरह से इन विधायकों को पछाड़ा. इस बारे में राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हरि देसाई ने बताया, “भूपेंद्र पटेल आनंदी बेन पटेल के खेमे के नेता रहे हैं. बाद में उन्होंने अमित शाह से भी अपने संबंध अच्छे कर लिए थे, लिहाज़ा उनके नाम पर किसी को कोई आपत्ति नहीं रही होगी.”
मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद गुजरात बीजेपी मुख्यालय में भूपेंद्र पटेल ने आनंदी बेन पटेल का आभार जताते हुए कहा कि उन्हें उनका समर्थन हासिल है.
अजय उमट कहते हैं, “आज के समय में बीजेपी के अंदर नरेंद्र मोदी, अमित शाह के बाद लोग जेपी नड्डा या फिर स्टेट सीएम का नाम लेते हैं. लेकिन खुले तौर पर भूपेंद्र पटेल ने कहा कि वे आनंदी बेन के आभारी हैं. यह उनकी लॉयल्टी को दर्शाता है.”
दरअसल भूपेंद्र पटेल सक्रिय राजनीति में गांधी नगर की घटलोदिया विधानसभा सीट से 2017 में चुनाव मैदान में उतरे थे, यह आनंदी बेन पटेल का विधानसभा क्षेत्र था और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भूपेंद्र पटेल को यहां से उम्मीदवार बनवाया था.
अजय उमट बताते हैं, “यह विधानसभा सीट बीजेपी के गढ़ गांधीनगर लोकसभा के अंतर्गत आती है और सबसे सुरक्षित सीट के तौर पर जानी जाती है. आनंदी बेन ने हर तरह से सुरक्षित सीट समझकर भूपेंद्र पटेल को यहां से टिकट दिलवाया था.”
गुजरात के राजनीतिक विश्लेषक इसे मोदी के अमित शाह और आनंदी बेन के बीच शक्ति संतुलन को साधने की कोशिश के तौर पर भी देखते हैं. उल्लेखनीय है कि विजय रुपाणी को अमित शाह कैंप का माना जाता रहा था.
अजय नायक कहते हैं, “ये बात किसी से छिपी नहीं है कि गुजरात में बीजेपी का दो कैंप है- एक आनंदी बेन पटेल का खेमा है तो दूसरा अमित शाह का. भूपेंद्र आनंदी बेन पटेल के आदमी रहे हैं. रुपाणी अमित शाह के कैंप के थे. तो एक तरह से इसे दूसरे कैंप के लिए संदेश के तौर पर भी देखा जा सकता है. मोदी की कामकाजी शैली का यह भी एक तरीका है कि वे किसी कैंप एक कैंप को बहुत शक्तिशाली नहीं होने देते हैं.”
हालांकि अमित शाह भूपेंद्र पटेल को सबसे पहले बधाई देने वालों में रहे हैं और सोमवार को शपथ ग्रहण समारोह में भी वे शामिल रहेंगे.
भूपेंद्र पटेल की एक ख़ासियत यह भी है कि वे बेहद लो प्रोफ़ाइल वाली शख़्सियत रहे हैं और उनमें किसी तरह का कोई एरोगेंस भी नहीं रहा है. लेकिन उनकी सीधी पहुंच नरेंद्र मोदी तक नहीं रही है. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भूपेंद्र पटेल नगर निगम स्तर पर सक्रिय थे.
ऐसे में बहुत संभव है कि उन्होंने आनंदी बेन पटेल की सलाह पर ही यह फ़ैसला लिया होगा. हालांकि अजय नायक एक और पहलू की ओर इशारा करते हैं, “भूपेंद्र पटेल के फ़ेवर में एक और बड़ी बात रही है, प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील का समर्थन भी उन्हें मिला होगा क्योंकि पाटील इन दिनों आनंदी बेन पटेल के साथ ही हैं.”
भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री बनने से सीआर पाटील को क्या फ़ायदा होगा, इस बारे में अजय नायक बताते हैं, “गुजरात बीजेपी में सबसे प्रभावशाली नेता अभी तो सीआर पाटील ही हैं, उनके सीधे नरेंद्र मोदी से संबंध हैं, ऐसे में प्रदेश संगठन अब सरकार से मनचाहे काम करा सकता है. रुपाणी, सीआर पाटील या संगठन के काम में उतनी दिलचस्पी नहीं लेते थे, लेकिन अब भूपेंद्र पटेल को दिलचस्पी लेनी होगी. संगठन के लोगों का काम होने से कार्यकर्ताओं की नाराज़गी दूर होगी.”
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या 2022 का गुजरात चुनाव पार्टी भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में लड़ेगी? क्या उनके आने से बीजेपी की जीत का रास्ता साफ़ हो गया है.
इस बारे में हरि देसाई कहते हैं, “बीजेपी की गुजरात में हार की आशंका तो इतनी जल्दी दूर नहीं होगी और सब जानते हैं कि ये चुनाव केवल पीएम मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा. यह ज़रूर है कि पार्टी कहेगी कि हमने पटेल मुख्यमंत्री दिया है. बीजेपी जिस संकट में है उससे उसको केवल और केवल पटेल समुदाय ही बचा सकता है.”
बीजेपी के लिए पटेल मतदाताओं की अहमियत पर अजय उमट कहते हैं, “गुजरात में पटेल समुदाय की अहमियत इन सबसे ज़्यादा है क्योंकि ये लोग ब्यूरोक्रेसी, सरकारी नौकरी और जमींदारी में सबसे प्रभावी हैं. इन लोगों के समर्थन से हवा बनती है और उसका असर दूसरे समुदायों पर भी होता है.”
इन सब ख़ासियतों के साथ भूपेंद्र पटेल की और एक ख़ासियत ने उन्हें मुख्यमंत्री पद पर पहुंचाया है. चुनाव लड़ने से पहले भूपेंद्र पटेल गुजरात की सबसे संपन्न संस्था अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन रहे थे. गुजरात के राजनीतिक गलियारे में अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी को कुबेर का ख़ज़ाना माना जाता है. लेकिन वे अब तक किसी विवाद में नहीं रहे हैं.
अजय उमट कहते हैं, “भूपेंद्र पटेल की इमेज एक ईमानदार आदमी की रही है, यह बात उनके समर्थन में गयी होगी. वे किसी चैलेंज को स्वीकार करने में यक़ीन रखने वाले शख़्स रहे हैं. अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी के अपने कामकाज के दौरान उन्होंने लोगों को प्रभावित किया था.”
कुछ विश्लेषकों के मुताबिक भूपेंद्र पटेल को पार्टी के प्रदेश कोषाध्यक्ष सुरेंद्र पटेल का समर्थन भी मिला होगा. हरि देसाई कहते हैं, “सुरेंद्र पटेल लंबे समय से कोषाध्यक्ष हैं और बीते तीन दशक से वे पार्टी के लिए संसाधनों को जुटाते रहे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी भी उनसे गुजरात को लेकर सलाह मशविरा करते रहे हैं.” मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद बीजेपी मुख्यालय के सभागार में भूपेंद्र पटेल झुककर सुरेंद्र पटेल का आशीर्वाद लेते नज़र आए.
हालांकि सुरेंद्र पटेल की बढ़ती उम्र की वजह से उनकी सक्रियता पहले जितनी नहीं रही और पिछले कुछ महीनों में प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील ख़ुद ही राज्य में बीजेपी के सबसे बड़े फ़ंड मैनेजर के तौर पर उभरे हैं.
बहरहाल, भूपेंद्र पटेल की एक और ख़ासियत की ओर इशारा करते हुए हरि देसाई कहते हैं, “ऐसा पहली बार नहीं है कि बीजेपी में कोई बिल्डर नेता रहा हो, लेकिन ये ज़रूर है कि पहली बार कोई बिल्डर मुख्यमंत्री बना है.”
बहरहाल भूपेंद्र पटेल के सामने अभी दो मुश्किल चुनौती है. पहली चुनौती तो उनके कार्यभार संभालने के साथ शुरू होने वाली है. कोविड संक्रमण की चुनौतियों के समय में आम लोगों की उम्मीदों पर उन्हें खरा उतरना होगा.
दूसरी चुनौती यही है कि क्या वे पटेल समुदाय को बीजेपी के पक्ष में जोड़ पाएंगे? भूपेंद्र पटेल राज्य के कड़वा पटेल समुदाय से आते हैं और पटेलों में ज़्यादा आबादी लेउवा पटेलों की है. इतना ही नहीं, पटेल समुदाय के नेता के तौर पर उनकी कोई पहचान नहीं है.
अजय उमट कहते हैं, “यही उनकी ख़ासियत बन सकती है. पटेल समुदाय की तीन संस्थाएं बेहद अहम हैं, खोडलधाम, उमियाधाम और सरदारधाम. भूपेंद्र पटेल युवा पेशवेरों के बीच काम करने वाली संस्था सरदारधाम के ट्रस्टी भी हैं और इन तीनों संस्थानों को साथ लेकर चलने की सलाहियत उनमें है.”
पटेल समुदाय की संस्था सरदारधाम बेहद अहम मानी जाती है. यह संस्था पटेल समुदाय के युवक-युवतियों को सरकारी जॉब दिलाने के लिए प्रशिक्षण, ट्रेनिंग, हॉस्टल इत्यादि की सुविधा मुहैया कराती है.
दिलचस्प संयोग है कि शनिवार को इस्तीफ़ा देने से ठीक पहले विजय रुपाणी इस संस्था के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. गर्ल्स हॉस्टल बनाने के भूमि पूजन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे.
नरेंद्र मोदी सुबह 11 बजे वर्चुअल रूप से समारोह से जुड़े और उन्होंने पटेल समुदाय के युवाओं की काफ़ी तारीफ़ की और उन्हें उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दी.
इस कार्यक्रम में बीजेपी के सभी बड़े पटेल नेता मौजूद थे. कार्यक्रम एक बजे तक चला. इस आयोजन के दौरान ही विजय रुपाणी को बीजेपी मुख्यालय पहुंचने का संदेश मिला और वहां से वो सीधे पार्टी मुख्यालय पहुंचे. जहां आलाकमान प्रतिनिधि के तौर पर पहले से मौजूद भूपेंद्र यादव ने उन्हें आलाकमान का संदेश सुनाया और इसके बाद रुपाणी ने राज्यपाल के पास जाकर अपना इस्तीफ़ा सौंपा.
भूपेंद्र पटेल कितने लो प्रोफ़ाइल हैं, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि सरदारधाम संस्था के ट्रस्टी होने के बावजूद वे शनिवार के आयोजन में सबसे पिछली कतार में बैठे थे.