नई दिल्ली. ‘द ग्रेट इंडियन मर्डर’ वेब सीरीज के साथ परदे के पीछे के तीन बड़े चेहरे जुड़े हैं, सबसे बड़ा नाम है प्रोड्यूसर अजय देवगन का. जो पहली बार वेबसीरीज प्रोड्यूसर कर रहे हैं, दूसरा नाम है ‘गैंग ऑफ वासेपुर’ फेम डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया का और तीसरा नाम थोड़ा ज्यादा दिलचस्प है, वो है विकास स्वरूप है. भारत के पूर्व विदेश सचिव विकास स्वरूप के नोवेल ‘क्यू एंड ए’ पर बनी मूवी ने 8 ऑस्कर अवॉर्ड जीते थे, जिसका नाम था ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ और उन्हीं के दूसरे नोवेल ‘द सिक्स सस्पेक्ट्स’ पर बनी है तिग्मांशु धूलिया की ये वेबसीरीज. ऐसे में उम्मीदें ज्यादा हैं, सीरीज हर एपिसोड में नए किरदार भी लांच करती है और कहानी लगातार आपको बांधे भी रखती हैं, लेकिन ऐसे कई झोल भी कहानी में दिखते हैं, जो एक मर्डर सस्पेंस थ्रिलर में डायरेक्शन और राइटिंग दोनों पर सवाल खड़े कर देते हैं.

पहले वेबसीरीज की कहानी जान लेते हैं, कहानी का मुख्य किरदार है विक्रम रॉय उर्फ विकी रॉय (जतिन गोस्वामी), जो छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री का बेटा है, पैसे और पॉवर के गुरूर में इस हद का बिगड़ा हुआ है कि अपनी 13 साल की सौतेली बहन का भी रेप कर देता है, एक हीरोइन की पीठ पर सबके सामने लात मार देता है और 2 लड़कियों के मर्डर के आरोप में पैसे के बल पर जेल से छूटने पर जेल जाने की सालगिरह वाले दिन एक बड़ी पार्टी अपने फॉर्म हाउस में रखता है. जाहिर है गृहमंत्री बाप जगन्नाथ राय (आशुतोष राणा) भी दूधा का धुला नहीं था. लेकिन फॉर्म हाउस में दी गई इसी पार्टी में विकी रॉय का कत्ल हो जाता है.

इधर कत्ल होने के बाद भी पिता की दिलचस्पी थी कि जो मुख्यमंत्री बेटे के बरी होने के बाद भी उसको वापस गृहमंत्री का पद नहीं दे रहा, उसकी सरकार गिराई जाए. उसका नक्सलियों से कनेक्शन दिखाकर अपने बेटे की हत्या के षडयंत्र में फंसाया जाए. इस काम में एक सीबीआई अफसर सूरज यादव (प्रतीक गांधी) को लगाया जाता है. जिनको असिस्ट करती है दिल्ली पुलिस की अफसर सुधा भारद्वाज (रिचा चड्ढा).

जाहिर हैं 6 लोगों पर विकी की हत्या का संदेह दिखाना था, तो उन सबकी अलग अलग कहानियां साथ में चल रही हैं, अंडमान के देवता की मूर्ति चोरी हो गई थी, उनका एक बंदा इकिती वेलफेयर ऑफिसर शारिब हाशमी के साथ हर शहर में ढूंढ रहा है, और विकी की पार्टी में पहुंच जाता है, उसके भाई को भी विकी ने मरवाया था. जेबकतरा मुन्ना (शशांक अरोरा) का विकी की बहन के साथ अफेयर है, जो उसे उस पार्टी से निकालकर दुबई भेजना चाहता है. एक रिटायर्ड चीफ सेक्रेट्री मोहन कुमार (रघुवीर यादव) विकी से अपने पैसों और गर्लफ्रेंड का बदला लेना चाहता है. पीठ पर लात खाई वो एक्ट्रेस भी पार्टी में मौजूद है और उसका बाप भी विकी को मारने की सुपारी दे चुका है. सभी पार्टी में मौजूद हैं.

इन सभी किरदारों की हर एपिसोड में अपनी कहानियां चलती रहती हैं, और 9 एपिसोड खिंच जाते हैं, तब भी कहानी खत्म नहीं होती. सीजन वन में आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करता है वो है विकी का किरदार और जतिन गोस्वामी की एक्टिंग. सबसे ज्यादा निराश करता है प्रतीक गांधी का रोल, जो कम से कम सीजन वन में बिलकुल प्रभावशाली नहीं लगा है. आशुतोष राणा और रघुवीर यादव की वजह से भी लोग बंधे रहते हैं. जाहिर है कहानी और डायरेक्शन इस तरह का है कि आपको बोरियत नहीं होती, हां कुछ सीन छोटे हो सकते थे, लेकिन जिस तरह की सिनेमेटोग्राफी है, लोकेशंस हैं, सैट्स हैं, उससे लगता है धूलिया ने काफी मेहनत की और फिल्म में जो वासेपुर टाइप इफैक्ट तो भाषा में लाजिमी ही था.

हालांकि सीजन वन ही है, सो ये नहीं पता चल पा रहा कि जो ढेर सारी लोचे फिल्म में कहानी के स्तर पर नजर आ रहे हैं, वो धूलिया के रहते हुए कवर अप क्यों नहीं हुए? वो वाकई में भूल हैं या फिर अगले सीजन में उनके राज खुलेंगे? क्योंकि ये जमता नहीं कि एक मर्डर सस्पेंस मूवी में कुछ भी अतार्किक सा दिखे. जैसे जब मुन्ना विकी की बहन का मोबाइल फोन ले लेता है और सारे वीडियो, फोटो देख लेता है तो उसे उसके बॉयफ्रेंड की जानकारी क्यों नहीं मिलती? उसको तो फोन देखकर ही पता चल जाना था कि इसका पहले से कोई बॉयफ्रेंड है? इसी तरह जब विकी अपनी बहन का मोबाइल छीन लेता है, तब भी उसे उसके असली बॉयफ्रेंड की जानकारी क्यों नहीं मिलती, यहां तक कि वो उसके गुर्गे उसका मोबाइल ले लेते हैं तब भी?

विकी की बहन के बॉयफ्रेंड के पास इतना भी पैसा नहीं था कि वो उसकी टिकट दुबई या लंदन की करवा पाता, जो एक जेबकतरे से पैसे लेती है? उसको फंसाती है. फिर बाद में वो बॉयफ्रेंड लंदन कैसे पहुंच जाता है? पूरी मूवी में कहीं नहीं लगता कि उसको इतने पैसे भी मां या पिता नहीं देते थे? मां बाप का विकी की इस हद तक बदतमीजियों पर चुप रहना भी जमा नहीं. अशोक राजपूत का विकी की पार्टी में आना इत्तेफाक था, फिर आखिर में ऐसा क्यों दिखाया गया जैसे वो अरसे से उसके मर्डर की प्लानिंग में लगा था?

केन्द्र का मंत्री यूं तो आशुतोष राणा को तब घर बुला लेता है, जब उसके बेटे की लाश घर पर रखी है और क्यों? क्योंकि फोन पर बात करने से रिकॉर्ड या टेप हो सकती है? लेकिन बाद में उससे सारी प्लानिंग फोन पर ही करता है? शबनम खान टीवी पर उस पर आरोप लगाने के बाद, उसकी इतनी बेइज्जती करने के बाद क्यों उसकी पार्टी में आई? शबनम की बहन कहां गई? क्या उसकी बहन ने पुलिस से या शबनम से शिकायत करना, बताना ठीक नहीं समझा? पृथ्वी सिंह के साथ कई आदमी थे? वो आदमी अचानक से कहां गायब हो गए, जो उनको पता नहीं चला और कितने ही दिन लाश सड़ती रही?

ये बहुत ही हास्यास्पद सा लगता है कि एक मामूली सा ब्लॉगर पैगासस जैसा सॉफ्टवेयर रखता है, जो किसी का भी फोन टेप कर लेता है. जबकि उसकी आय का कोई जरिया नहीं दिखाया जाता. जो सवाल मुन्ना से सबसे पहले पूछा जाना चाहिए था कि वो विकी की पार्टी में क्यों गया था? वो तीसरी पूछताछ में छठे या सातवें एपिसोड में पूछा जाता है, यानी डायरेक्टर का जब मन करे तब पुलिस वाले पूछेंगे.

वैसे तिग्मांशु चाहते तो ये 9 एपिसोड आसानी से 6 एपिसोड में सिमट सकते थे, मोहन प्रसाद का डबल रोल वाला ड्रामा और मुन्ना की कहानी को आसानी से छोटा किया जा सकता था. तिग्मांशु चार राज्यों में ही हमारी सरकार है, मैडम का आदेश है से कांग्रेस की तरफ और आशुतोष राणा से मुंह से लगातार ‘भाईसाहब’ कहलवाकर आरएसएस की तरफ और नक्सलिय की कहानी जोड़कर पॉलिटिकल विवादों को भी हवा देने की कोशिश करते नजर आए हैं, इसी चक्कर में थ्रिलर की कड़ियां जोड़ने में गड़बड़ होती है. लेकिन ये शायद इसलिए भी होता है क्योंकि कहानी में किरदार काफी थे, कई शहरों में कहानी बिखरी पड़ी थी. ऐसे में डायलॉग्स और मारक हो सकते थे.