टाटा मोटर्स के पास सूमो, सियारा, सफ़ारी जैसी शक्तिशाली एसयूवी, इंडिका-इंडिगो जैसी कारें थीं, लेकिन 10 जनवरी उम्मीदों भरा दिन था.

इसकी वजह कंपनी के तत्कालीन अध्यक्ष रतन टाटा का एक सपना था. वो सपना था आम आदमी के लिए एक लाख रुपये की क़ीमत में अच्छी कार पेश करने का. ऐसे में हर किसी की उत्सुकता थी कि क्या सपना सच होने वाला है?

भारी उत्सुकता के बीच रतन टाटा एक बहुत छोटी ट्यूबलर कार में मंच पर नज़र आए. दिखने में घोंघे के आकार की ये कार लोगों को प्यारी लगी. नाम था नैनो और रतन टाटा के वादे के मुताबिक़ कार की क़ीमत थी एक लाख रुपये. क़ीमत के चलते कार सुर्ख़ियों में आ गई.

कई लोगों ने अपने पहले कार के सपने को पूरा करने के लिए नैनो बुक की और कुछ ने नैनो को परिवार में दूसरी कार के रूप में बुक किया, लेकिन बुकिंग से लेकर कार की डिलिवरी तक स्थिति बदलती गई और नैनो को भी बदलना पड़ा.

दरअसल एक लाख रुपये की कार लाने का विचार जितना दिलचस्प था, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी. इसे पूरा कर पाना आसान नहीं था. लेकिन टाटा मोटर्स ने इससे कुछ साल पहले टाटा ‘एस’ नाम से एक मिनी ट्रक लॉन्च किया था. ये मिनी ट्रक छोटा हाथी के नाम से बाज़ार में काफ़ी बिकने लगा था.

टाटा मोटर्स ने उसी सफलता को दोहराने के लिए टाटा ‘एस’ को बनाने वाले गिरीश वाघ के नेतृत्व में एक युवा टीम का गठन किया. गिरीश वाघ की टीम के सामने रतन टाटा के नैनो के सपने को साकार करने का लक्ष्य था.

2018 दिल्ली ऑटो एक्सपो में गिरीश वाघ ने बीबीसी मराठी को बताया था, “जब नैनो प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था, तब हमारे तत्कालीन अध्यक्ष रतन टाटा और कार्यकारी निदेशक रविकांत ने मुझसे कहा कि यह प्रोजेक्ट आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है. उसके बाद क़रीब पांच साल तक नैनो पर काम चला. काग़ज़ पर पूरी कार डिज़ाइन करने से लेकर नई फ़ैक्ट्री बनाने में काफ़ी वक्त लगा.”

2006 में पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा नैनो का प्लांट तैयार हुआ. इस प्लांट के लिए स्थानीय किसानों से ज़मीन ली गई, एक पूरी फ़ैक्ट्री लगाई गई और इसमें नैनो का उत्पादन शुरू हुआ. लेकिन यह ज़्यादा दिनों तक नहीं चल सका.

अंतत: विरोध और कर्मचारियों पर ख़तरे की आशंका को देखते हुए टाटा मोटर्स ने सितंबर, 2008 में सिंगूर प्लांट बंद कर दिया और एक नए स्थान की तलाश शुरू कर दी.

तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. उन्होंने टाटा से नैनो की फ़ैक्ट्री को गुजरात के साणंद लाने का ऑफ़र दिया.

सिंगूर से साणंद की दूरी क़रीब दो हज़ार किलोमीटर की है. यानी पूरे प्लांट को एक जगह से दूसरे जगह ले जाना आसान नहीं था.

तब टाटा ने इस चुनौती के सामने तीन तरह के प्रस्तावों पर काम किया.

एक तो यह कि पूरी फ़ैक्ट्री- यानी सारी मशीनें, कच्चा माल और अन्य सामग्री को सिंगूर से सड़क मार्ग से साणंद पहुंचाया जाए.

दूसरा प्रस्ताव यह था कि उत्तराखंड के पंतनगर और महाराष्ट्र के पुणे में टाटा के अन्य कारखानों में
अस्थायी निर्माण व्यवस्था की जाए ताकि नैनो का उत्पादन जारी रहे और बुकिंग के अनुसार कारें जनता तक पहुंचती रहें.

कंपनी को सिंगूर से साणंद लाने में कुल 3,340 ट्रक, लगभग 495 कंटेनर और सात महीने का समय लगा. 1800 करोड़ रुपये का कारखाना आख़िर में साणंद पहुंच गया. सिंगूर में उत्पादन बंद होने के 14 महीने बाद नवंबर 2009 में गुजरात में कार का उत्पादन शुरू हुआ.

लॉन्चिंग के समय नैनो ने दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियां बटोरी थीं. कार के इंटरनेशनल बाज़ार में नैनो को वैसी ही चर्चा मिली थी, जैसी चर्चा 1930 के दशक में फ़ोक्सवैगन बीटल और 1950 के दशक में फ़िएट 500 को मिली थी.

महज़ एक लाख रुपये की कार के लिए हर कोई बुकिंग चाह रहा था. लोगों के आवेदनों के बाद लकी ड्रॉ के ज़रिए लोगों तक कार पहुंचने लगी. लेकिन शुरुआती कुछ मॉडलों को छोड़कर नैनो की क़ीमत को लंबे समय तक एक लाख रुपये तक रखना संभव नहीं था.

इस बढ़ोतरी के कारण नैनो मारुति 800 और मारुति ऑल्टो की तुलना में बहुत सस्ती नहीं रह गई. इसके चलते लोगों का झुकाव फिर से मारुति की कारों की तरफ़ हो गया.

इसकी एक बड़ी वजह नैनो की गुणवत्ता से जुड़ी ख़ामियां भी थीं, जो लोगों ने शुरुआती डिलीवरी में देरी के बाद देखी.

टाटा नैनो की साख पर सबसे बड़ा सवाल 2014 में तब लगा जब कार की सुरक्षा रेटिंग देने वाले ग्लोबल एनसीएपी ने इसे ज़ीरो स्टार दिया. कुछ कारों में आग लगने के कारण भी इसकी साख ख़राब हो चुकी थी. लेकिन ज़ीरो रेटिंग के बाद सैकड़ों लोगों ने अपनी बुकिंग रद्द कर दी थी.

दूसरी तरफ़ टाटा मोटर्स ने बाज़ार में इस ब्रैंड को बचाने के लिए नैनो ट्विस्ट और जेन-एक्स नैनो जैसे नए मॉडल भी पेश किए जिसमें ट्रंक के साथ नई एएमटी गियरबॉक्स तकनीक थी. साथ ही इसमें सीएनजी का ऑप्शन भी दिया गया था. लेकिन इन सबके बावजूद नैनो की बिक्री नहीं बढ़ी.

टाटा मोटर्स ने शुरुआत में प्रति वर्ष तीन लाख नैनो की बिक्री का लक्ष्य रखा था. लेकिन कंपनी इस लक्ष्य को कभी हासिल नहीं कर सकी. टाटा समूह की कमान जब साइरस मिस्त्री को मिली तो उन्होंने सबसे पहले टाटा समूह में घाटे में चल रही परियोजनाओं को बंद करने की सलाह दी. और इस सलाह के केंद्र में था टाटा नैनो प्रोजेक्ट, जो रतन टाटा का पसंदीदा प्रोजेक्ट था.

इसके अलावा कई दूसरे मुद्दों पर भी मिस्त्री और टाटा के बीच विवाद सुर्ख़ियों में आए जिसके बाद मिस्त्री को सीईओ के पद से भी हटा दिया गया. कंपनी में नेतृत्व में बदलाव के बाद भी नैनो की आख़िरी खेप का उत्पादन दिसंबर, 2019 में हुआ. 10 साल में यह कार बमुश्किल तीन लाख बिकी.

टाटा मोटर्स ने 2010 के जिनेवा मोटर शो में नैनो के इलेक्ट्रिक वेरिएंट को प्रदर्शित किया था. टाटा मोटर्स की तब की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इलेक्ट्रिक नैनो की रेंज 160 किलोमीटर होगी और यह 10 सेकंड में 0 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार पकड़ने की क्षमता रखेगी. लेकिन इस बात को क़रीब 13 साल हो गए हैं.

लेकिन पिछले साल मई में ख़ुद रतन टाटा को नैनो इलेक्ट्रिक से ताज होटल में प्रवेश करते देखा गया था. लिहाज़ा आज भी नैनो इलेक्ट्रिक वेरिएंट के बाज़ार में आने से की संभावना बनी हुई है.

वर्तमान में टाटा मोटर्स इलेक्ट्रिक चौपहिया वाहनों का भारत में अग्रणी उत्पादक है. टाटा मोटर्स अब तक 50 हज़ार से ज़्यादा नेक्सॉन, टिगोर और टियागो के इलेक्ट्रिक वेरिएंट बेच चुकी है. ऐसे में अगर नैनो का इलेक्ट्रिक वेरिएंट आता है तो उसे भी बाज़ार में अच्छा रिस्पॉन्स मिल सकता है.

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