मुजफ्फरनगर। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के एक प्रभावशाली धड़े द्वारा नए संगठन की घोषणा के बाद भाकियू की राजधानी सिसौली में अफरातफरी का माहौल है। जाने वालों को भले ही भाकियू नेतृत्व आस्तीन के सांप बता रहा हो, लेकिन आला पदाधिकारियों के चेहरे पर भविष्य के नुकसान की चिंता भी है। अंदेशा है कि कई अन्य दिग्गज भी भाकियू का दामन छोड़ सकते हैं।
भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दल के नेता भी इस मामले पर नजर गड़ाए हैं। भाकियू के सिपहसालार रहे कई दिग्गज इस समय भाजपा में हैं। ऐसे में उनकी भूमिका भी काफी अहम मानी जा रही है। अन्य किसान संगठनों ने भी सिसौली की घेराबंदी तेज कर दी है। इन हालात में आने वाले दिनों में भाकियू के दिन कठिनाई भरे हो सकते हैं।
उधर, डैमेज कंट्रोल के लिए भाकियू के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत और प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने पदाधिकारियों से बात की है। जो नहीं रुक रहे, उनके निष्कासन की सूची बनाई जा रही है। लखनऊ में रविवार को भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) की घोषणा के बाद भाकियू संगठन में हलचल तेज हो गई है।
संगठन के जानकारों का मानना है कि भाकियू में इस टूट का असर आने वाले दिनों में दिखेगा। बताते हैं कि पूर्व में भाकियू छोड़कर गए दिग्गजों का नए संगठन को साथ मिल रहा है। खाप चौधरियों पर टिकी नजर नए किसान संगठन में गठवाला खाप चौधरी राजेंद्र सिंह मलिक को संरक्षक बनाया गया है। ऐसे में नए संगठन को गठवाला खाप का समर्थन रहेगा। वैसे भी गठवाला खाप के कई थांबेदार भाजपा के संपर्क में हैं। विधानसभा चुनाव से पहले खाप चौधरी समेत थांबेदारों ने पूर्व विधायक उमेश मलिक पर सिसौली में हमले का विरोध किया था।
हालांकि जिले में बालियान खाप सबसे बड़ी है, जिसके मुखिया चौ. नरेश टिकैत हैं, लेकिन गठवाला खाप के मुजफ्फरनगर और शामली के राजस्व रिकार्ड में 84 गांव हैं। अन्य खाप चौधरी किसे अपना आशीर्वाद देंगे, इसपर सभी की नजर है।
इस हलचल के बीच भाकियू के मंडल अध्यक्ष नवीन राठी ने कहा कि जब-जब यूनियन को कमजोर करने की कोशिश की गई, वह और ज्यादा मजबूत हुई है। कहा कि सिसौली में प्रज्वलित संगठन की अखंड ज्योति का प्रकाश देश-दुनिया में फैलता रहेगा। यूनियन कार्यकर्ता और ज्यादा मेहनत से काम करेंगे। यूनियन को कमजोर नहीं होने दिया जाएगा। बताया कि जल्द ही सहारनपुर मंडल के तीनों जिलों में पंचायतें कर किसानों की समस्याओं पर विचार-विमर्श होगा। दिक्कतों के समाधान और किसान आंदोलन को लेकर आगे की रणनीति तय की जाएगी। उनका कहना है, वैचारिक मतभेद के चलते लोग आते-जाते रहते हैं।