नई दिल्ली. मासिक धर्म या पीरियड्स, मातृत्व का सूचक है। हर महीने महिलाओं के शरीर में होने वाली यह प्रक्रिया इस बात का प्रमाणपत्र है कि आप जीवन के सबसे सुखमय अवस्था ‘मां बनने’ के योग्य हैं। हालांकि ईश्वर के इस वरदान को सदियों से हमारा समाज एक अलग ही दृष्टि से देखता आ रहा है। मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को अछूता मानना, उन्हें घर के काम न करने देना, पूजा-पाठ के योग्य न मानने जैसी कई रूढ़िवादी सोच लंबे समय से चलती आ रही है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इसे महिलाएं स्वयं एक अभिशाप के तौर पर मानती आ रही हैं। पैडमैन जैसी फिल्मों ने मासिक धर्म को लेकर लोगों की सोच और अवधारणा में बदलाव लाने की सकारात्मक पहल जरूर की है, पर इसका असर सिर्फ शहरी क्षेत्रों के इर्द-गिर्द ही देखा जा रहा है। गांवों में अब भी मासिक धर्म को ‘अछूत दिनों’ के तौर पर ही माना जाता आ रहा है।
मासिक धर्म को लेकर चली आ रही रूढ़िवादी सोच का सामाजिक स्तर पर कई प्रकार से दुष्प्रभाव भी देखने को मिलता रहा है। मध्यप्रदेश से सामने आ रहे एक ऐसे ही मामले ने इस प्रकार की सोच पर गंभीरता से विचार करने को विवश कर दिया है। यहां एक गांव में महिलाएं करीब 20 वर्षों से सिर्फ इसलिए गर्भनिरोधक गोलियां खाती आ रही हैं, ताकि उन्हें पीरियड्स न आएं और वह बिना किसी बंधिश के सामान्य जीवन जी सकें, घर के काम कर सकें। सेहत के लिहाज से इसे विशेषज्ञ बहुत हानिकारक मानते हैं, कई महिलाओं में गंभीर स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं भी देखी जा रही हैं। आइए इस बारे में आगे विस्तार से जानते हैं।
आप भी मामले की हैरान कर देने वाली हकीकत का अंदाजा लगाइए और विचार कीजिए कि एक तरफ तो हम महिलाओं को चांद पर भेजने की तैयारी कर रहे हैं, दूसरी ओर पीरियड्स को लेकर हमारी सोच उन्हें ऐसे काम करने को मजबूर कर रही है, जिससे उनकी जान भी जोखिम में पड़ सकती है।
पूरा मामला जानिए
मामला मध्यप्रदेश के एक जिले का है (यहां प्रदेश या स्थान महत्वपूर्ण नहीं है, ऐसे या इससे संबंधित मामले देश के कई अन्य गांवों में भी हो सकते हैं)। खैर, यहां कई महिलाएं वर्षों से नियमित रूप से गर्भनिरोधक गोली ‘माला-डी’ खाती आ रही हैं, ताकि उन्हें मासिक धर्म ही न आए और वह ‘उन दिनों’ के सारे बंधनों से मुक्त रह सकें। इसके अलावा चूंकि हमारे समाज में घर के सारे काम करने की जिम्मेदारी महिलाओं की ही होती है, ऐसे में वह पीरियड्स न आने देकर पुरुषों को चूल्हा-चौका के ‘अतिरिक्त भार’ से भी मुक्त रख सकें।
मामले की जानकारी देने वाले सूत्र बताते हैं कि यह हाल किसी एक महिला या एक घर का नहीं है, अमूमन जिन घरों में सारे कामकाज की जिम्मेदारी अकेली महिला पर होती है, वहां पूरे गांव में यही चलता आ रहा है। जब उनके घर में सास या कोई अन्य महिला आ जाती है तो वह गोलियां लेना बंद कर देती हैं जिससे उन्हें दोबारा पीरियड्स आ जाएं और उन दिनों में कोई दूसरी महिला सदस्य सारे काम कर सके।
‘माला-डी’ चूंकि मुफ्त है और आसानी से मिल जाती है, ऐसे में यह इन महिलाओं के लिए सबसे आसान हथियार बन गया है। हालांकि इसका असर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की सेहत को प्रभावित कर रहा है। लंबे समय तक बिना डॉक्टरी सलाह के इन गोलियों के सेवन के कारण कई महिलाओं को तनाव, ब्लड प्रेशर और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो रही हैं।
महिलाओं में बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य के मामले
नियमित रूप से गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव हो सकता है। ऐसे ही एक मामले में तनाव विकार की शिकार महिला इलाज के लिए भोपाल में वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ सत्यकांत त्रिवेदी के पास पहुंची। इस हैरान कर देने वाले मामले का जिक्र करते हुए डॉ. सत्यकांत बताते हैं
”एक 62 वर्षीय महिला डिप्रेशन की समस्या लेकर आई, इलाज के एक महीने बाद महिला ने हाथ-पैर में जलन की समस्या के बारे में बताया। पूछताछ के दौरान पता चला कि वो महिला भी वर्षों से गर्भनिरोधक गोली खाती आ रही है, ताकि उन्हें पीरियड्स न आएं। इसके दुष्प्रभाव के रूप में मस्तिष्क में कुछ कैमिकल इंबैलेंस की समस्या का निदान किया गया, जो डिप्रेशन का कारण मानी जाती है।”
गर्भनिरोधक गोलियों के लंबे समय तक सेवन के चलते इसके मस्तिष्क पर होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में डॉ सत्यकांत बताते हैं- ”गर्भनिरोधक गोलियां एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर को बढ़ा देती हैं। वैसे तो इसका सीमित समय के लिए सेवन नुकसानदायक नहीं है, हालांकि इस केस में जिस तरह से महिला वर्षों से बिना डॉक्टरी सलाह के इसका सेवन करते आ रही है, इसके कारण हार्मोन का स्तर बढ़ सकता है। वैसे तो एस्ट्रोजन हार्मोन मासिक धर्म को रेगुलेट करने के लिए आवश्यक है, पर इसकी अधिकता प्रजनन पथ, मूत्र पथ, हृदय और रक्त वाहिकाओं, हड्डियों और मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकती है।
इन गोलियों के अधिक सेवन के क्या नुकसान हैं?
इस केस के दूसरे चरण में हमने गर्भनिरोधक गोलियों के मस्तिष्क पर होने वाले हानिकारक दुष्प्रभावों को जानने के प्रयास किए। इससे संबंधित हुए कई अध्ययनों में लंबे समय तक इन गोलियों के सेवन के कारण गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में पता चलता है।
लाइव साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि लंबे समय तक बिना डॉक्टरी सलाह के इन गोलियों का सेवन करने से मस्तिष्क की हाइपोथैलेमस ग्रंथि का आकार छोटा हो सकता है। यह ग्रंथि मुख्यरूप से हार्मोन सिस्टम को कंट्रोल करने का काम करती है। हाइपोथैलेमस ग्रंथि के आकार में होने वाली इस कमी के कारण अधिक गुस्सा आने या डिप्रेशन जैसी दिक्कतों का जोखिम बढ़ जाता है।
स्कूल ऑफ साइकोलॉजी में प्रोफेसर डॉ. एंड्रा स्मिथ बताती हैं, जो महिलाएं कम उम्र से या लंबे समय तक मौखिक गर्भ निरोधक गोलियां लेती रहती हैं, इस अध्ययन में उनकी मस्तिष्क संरचना और संज्ञानात्मक कार्यों में कमी जैसी समस्याओं का जोखिम भी अधिक पाया गया है।
महिलाओं के शरीर पर दुष्प्रभाव
अब हमारे दिमाग में अगला सवाल यह खड़ा हुआ कि मस्तिष्क के साथ गर्भ निरोधक गोलियों का अधिक सेवन महिलाओं के शरीर को किस तरह से प्रभावित कर सकता है? इस संबंध में विस्तार से जानने के लिए हमने इसी केस पर काम कर रही वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ दीप्ति गुप्ता से संपर्क किया। डॉ दीप्ति बताती हैं-
”अगर किसी महिला को अनियंत्रित ब्लड शुगर, अनियंत्रित डायबिटीज या ब्लड क्लॉटिंग की फैमिली हिस्ट्री हो तो इन स्थितियों में उन्हें गर्भनिरोधक गोलियां न लेने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा सामान्यतौर पर माला-डी 21 दिनों तक लगातार लेने के बाद अगर 7 दिन के लिए बंद कर दिया जाए तो दोबारा पीरियड्स आ जाते हैं। लेकिन यह केस इसलिए काफी हैरान करने वाला है क्योंकि इसमें महिलाएं गोली लेना तब ही बंद करती हैं, जब उनके घर में कोई काम करने वाली दूसरी महिला आ जाए।”
इसके अलावा सामान्यतौर पर 40-50 साल की उम्र मेनोपॉज की मानी जाती है, जिसमें स्वाभाविक तौर पर पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं, इस केस में चूंकि महिला लगातार इन गोलियों का सेवन करती आ रही है, ऐसे में इसका भी अंदाजा लगाना कठिन है कि उन्हें मेनोपॉज हुआ या नहीं?
गर्भ निरोधक गोलियों के लंबे समय तक सेवन के शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में डॉ दीप्ति बताती हैं, इन गोलियों का बिना डॉक्टरी सलाह लंबे समय तक सेवन के कारण वजन बढ़ने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा कुछ स्थितियों में इसके कारण ब्लड क्लॉटिंग की भी दिक्कत बढ़ जाती है, जो अगर मस्तिष्क तक पहुंच जाए तो इसके कारण स्ट्रोक का खतरा हो सकता है। यह गोलियां, हार्मोन रिप्लेस थेरपी के तौर पर भी काम करती हैं, इसके अपने भी कई साइड-इफेक्ट्स हो सकते हैं।
गर्भनिरोधक गोलियों के दुष्प्रभावों से संबंधित अध्ययन
गर्भनिरोधक गोलियों का अधिक सेवन शरीर को कई तरह से प्रभावित करता है। साल 2017 में हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि इसका अधिक सेवन बहुत तेजी से वजन बढ़ाने या कम होने का कारण बन सकता है। इसके अलावा शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तनों के कारण सेक्स ड्राइव या सेक्स की इच्छा में भी कमी आ सकती है। कुछ स्थितियों में यह वजाइनल डिस्चार्ज को या तो बढ़ा या कम कर सकता है।
पीएमसी जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध में इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि मौखिक गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग के दौरान होने वाले हार्मोनल परिवर्तनों के कारण आंखों में भी दिक्कतें हो सकती हैं। यह कॉर्निया को मोटा कर देती है जिसके कारण नजर से संबंधित विकारों का खतरा बढ़ जाता है।
रूढ़िवादिता का दंश झेलती महिलाएं
केस के अंत में एक सवाल बना हुआ था कि आखिर हमारे समाज में पीरियड्स को लेकर इतनी रूढ़िवादिता क्यों है? इस बारे में जानने के लिए हमने कुछ विशेषज्ञों से बात की। वह बताते हैं कि संभवत: प्रतिबंधों को बनाया तो अच्छे के लिए गया था, लेकिन उसे प्रयोग गलत तरीके से लाया जा रहा है। चूंकि पहले परिवार लंबे होते थे, जिसमें घर पर चक्की पीसने, कुएं से पानी लाने जैसे महिलाओं को कई तरह के मेहनत के काम करने होते थे। पीरियड्स के दिनों में उन्हें आराम मिल सके, इस सोच के साथ उन्हें घर के काम नहीं करने दिए जाते थे, हालांकि समाज में इस सोच को गलत तरीके से प्रचारित किया गया, जिसका खामियाजा दशकों से महिलाएं झेल रही हैं।
इस पूरे केस का सार माहवारी को लेकर समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और महिलाओं के सेहत पर पड़ते इसके दुष्प्रभावों के आसपास घूमती नजर आती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बारे में विशेष जागरूकता की आवश्यकता है। पीरियड्स कोई पाप नहीं है, यह एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, इसे शर्म का विषय क्यों माना जाता रहा है? इस बारे में सभी लोगों को स्व-विचार की आवश्यकता है। हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है, वरना देश में यह कोई अकेला केस या अकेला गांव नहीं है, ऐसे न जाने कितने गांवों में महिलाएं जाने-अनजाने अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करती आ रही होंगी।
साभार : अभिलाष श्रीवास्तव । अमर उजाला
खबर का मूल लिंक : https://www.amarujala.com/photo-gallery/lifestyle/fitness/menstrual-stereotypes-effects-on-society-women-have-been-taking-contraceptive-pills-for-years