2013 के दंगे के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ी जातियों की भाजपा के पक्ष में सवर्णों के साथ हुई लामबंदी 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए संजीवनी बनी। भाजपा की एकतरफा जीत में अति पिछड़ी जातियों के समर्थन ने तमाम समीकरण और कयास ध्वस्त कर दिए। भाजपा ने जहां हिंदुत्व को सामने रखा, वहीं जातीय समीकरणों को भी साधने पर फोकस किया। पश्चिम में चरथावल से विजय कश्यप को टिकट देकर कश्यप समाज को साधा तो सैनी समाज को सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल में नौ टिकट देकर अपने साथ जोड़ा। लोकेश प्रजापति को पिछड़ा वर्ग का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर प्रजापति समाज को जोड़ा। विश्वकर्मा, पाल समाज के लोगों को पार्टी में पदों और सत्ता में शामिल करने का काम किया।
2019 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर से चौधरी अजित सिंह और बागपत से चौधरी जयंत सिंह की हार के बाद सपा और रालोद को अति पिछड़ों की ताकत का अहसास हुआ। सपा ने अब पश्चिम में अति पिछड़ों पर सीधा फोकस किया है। पार्टी पश्चिम में अधिक संख्या वाली जाति कश्यप, सैनी और पाल को साधना चाहती है। सपा पश्चिम में इस बार कश्यप, सैनी और पाल बिरादरी को विधानसभा चुनाव में प्रतिनिधित्व देने की तैयारी में है।
कश्यप को कहां से लड़ाएगी पार्टी
सपा ने कश्यप महासम्मेलन कराकर कश्यप समाज में संदेश देने का काम तो कर दिया है, लेकिन यक्ष प्रश्न ये भी है कि सपा कश्यप प्रत्याशी को चुनाव कहां से लड़ाएगी। क्योंकि सपा के टिकट पर किरणपाल कश्यप एक बार थानाभवन से विधायक रह चुके हैं। अब सपा के पास चरथावल ही एक ऐसी सीट है, जहां से कश्यप को लड़ाया जा सकता है। लेकिन हरेंद्र और पंकज मलिक के पार्टी में आने से यहां कश्यप प्रत्याशी तय करना मुश्किल नजर आ रहा है।