सहारनपुर. दारुल उलूम देवबंद में बिना अनुमति कराए गए निर्माण कार्यों का मामला फिर से उठ गया है। पिछले तीन वर्षों से लंबित कंपाउंडिंग को लेकर डीएम अखिलेश सिंह की अध्यक्षता में बैठक हुई। जिसमें देवबंद एसडीएम समेत पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। इसकी रिपोर्ट पर ही कंपाउंडिंग शुल्क तय किया जाएगा।
डीएम कार्यालय में हुई बैठक में दारुल उलूम की लाइब्रेरी की छत पर कथित तौर पर हेलीपैड बनाने और बिना अनुमति निर्माण कार्य कराए जाने को लेकर चर्चा हुई। जिसमें पिछले तीन वर्षों से रुका कंपाउंडिंग का कार्य संपन्न कराने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। कमेटी की रिपोर्ट पर ही कंपाउंडिंग शुल्क तय किया जाएगा।
एसडीएम देवबंद दीपक कुमार ने बताया कि बैठक में कंपाउंडिंग को लेकर चर्चा हुई। वर्ष 2019 में जांच उपरांत इसकी कंपाउंडिंग कराने को कहा गया था। जिसकी जिम्मेदारी रीजनल टाउन प्लानर मेरठ को सौंपी गई थी। जिन्होंने 40 करोड़ रुपये का जुर्माना तय किया था, लेकिन उक्त अधिकारी के सेवानिवृत्त होने के बाद तैनाती पर आए दूसरे अधिकारी ने पेनाल्टी को केवल 39 लाख रुपये कर दिया था।
वहीं कंपाउंडिंग निर्धारित न होने के कारण मानचित्र स्वीकृत नहीं हो सका और न ही अन्य कार्यों को लेकर अनुमति दी गई। डीएम ने इस मामले को लेकर बैठक बुलाई और कंपाउंडिंग को लेकर पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया। जिसमें एसडीएम देवबंद को भी भी शामिल किया गया है।
इसके अलावा विकास प्राधिकरण के जेई, पीडब्ल्यूडी के अधिशासी अभियंता, जल निगम के अधिशासी अभियंता और रीजनल टाऊन प्लानर मेरठ को शामिल किया गया है। इसमें डीएम ने अतिशीघ्र गणना करके कंपाउंडिंग तय कर रिपोर्ट दिए जाने के निर्देश दिए हैं।
यह था मामला
वर्ष 2019 में बजरंग दल के प्रांत संयोजक विकास त्यागी ने दारुल उलूम की लाइब्रेरी पर हेलीपैड बनाए जाने और बिना मानचित्र स्वीकृत कराए निर्माण कार्य कराए जाने की शिकायत मुख्यमंत्री से की थी। जिसके बाद सीएम कार्यालय से मामले की जांच के आदेश हुए थे। तत्कालीन डीएम आलोक कुमार पांडेय और एसएसपी दिनेश कुमार पी. ने इसकी जांच की थी। जिसमें हेलीपैड तो बनना नहीं पाया गया, लेकिन बिना अनुमति लाइब्रेरी और अन्य निर्माण कार्य होना मिला था। जिसमें भवन को लेकर रिपोर्ट मांगी गई थी और कंपाउंडिंग की गई थी।
पहले यह 40 करोड़ रुपये का कंपाउंड शुल्क लगाया था, जो दूसरे रीजनल टाउन प्लानर मेरठ ने मात्र 39 लाख रुपये कर दिया था। इसमें दारुल उलूम प्रबंधन की ओर से सहयुक्त नियोजक मेरठ कार्यालय के यहां करीब 25 लाख रुपये का जुर्माना भी पूर्व में जमा कराया गया था।