मुजफ्फरनगर। देश और दुनिया में किसान राजनीति में अपनी पहचान बना चुकी भाकियू को राजनीति कभी भी रास नहीं आई है। मुजफ्फरनगर जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में वह पहली बार मैदान में उतरी और बुरी तरह हार गई। इससे पहले राकेश टिकैत दो बार चुनाव लड़े और बड़े राजनीतिक दलों के समर्थन के बाद भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपनी जमानत नहीं बचा पाए।

किसान आंदोलनों के चलते भाकियू की पहचान देश ही नहीं दुनिया में हैं। किसानों के समर्थन और कई बार पंचायतों में उमड़े जनसमूह को देखकर भाकियू के नेता भी राजनीति की ओर मोहित हो जाते हैं। जिला पंचायत के चुनाव में भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने भाजपा से मुकाबले के लिए सतेंद्र बालियान को प्रत्याशी के रूप में उतारा था। भाकियू की पहल पर सतेंद्र को विपक्षी दलों ने भी अपना समर्थन दे दिया था।

राजनीति की चालों से अनभिज्ञ भाकियू नेता चुनाव को संभाल ही नहीं पाए और विपक्ष को एकजुट नहीं कर पाए। हालात यह बनी की सतेंद्र मात्र चार वोटों में ही सिमट गए। इस चुनाव में भाजपा की एकतरफा जीत हो गई।

दो दशक पहले भाकियू ने बीकेडी नाम से पार्टी भी बनाई थी, जिसमें लोकसभा के चुनाव में कोई भी प्रत्याशी जमानत नहीं बचा पाया था। भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत लोकसभा और विधानसभा में प्रवेश के लिए दो बार प्रयास कर चुके हैं।

2007 में वह खतौली विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक का चुनाव लड़े तो जमानत नहीं बचा पाए और दस हजार से कम पर ही सिमट गए। इसी तरह 2014 में राकेश टिकैत ने अमरोहा से लोकसभा का चुनाव लड़ा और उन्हें रालोद एवं कांग्रेस दोनों ने समर्थन दिया। ऐसे हालात में भी वह दस हजार का आंकड़ा पार नहीं कर पाए और उनकी जमानत जब्त हो गई।

उसके बाद अब लंबे समय बाद भाकियू ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में हुंकार भरते हुए सतेंद्र बालियान को चुनाव लड़वाया। यहां भी उनकी करारी हार हुई। भाकियू को आंदोलन में जनता का समर्थन मिल जाता है, लेकिन राजनीति में वह हर बार गच्चा खा जाती हैं।