
नई दिल्ली। दो महीने की अवधि से भी अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन से भाजपा के मजबूत हो चुके वोट बैंक में बडी सेंध लगती नजर आ रही है। आंदोलन का अब राजनीतिक असर भी दिखने लगा है। वेस्ट यूपी, हरियाणा ओर पंजाब तक फैली जाट बेल्ट में अब तक मजबूत दिख रही भाजपा की राजनीतिक जमीन धीरे-धीरे दरकती नजर आ रही है। जहां विपक्ष के जाट नेताओं के लिए किसान आंदोलन से घर बैठे बडा मौका हाथ लगा है, वहीं भाजपा नेतृत्व के लिए भी अपना जनाधार कायम रखना बडी चुनौती साबित होगा।
राजनीतिक रंग लेते किसान आंदोलन में विपक्षी नेता अपने लिए मौका देख रहे हैं। पिछले हफ्ते आंदोलन को दबाने की कोशिश का जैसा प्रतिरोध हुआ, उससे इन नेताओं की उम्मीदें जगी है। गाजीपुर बॉर्डर पर जाटों और गुर्जरों के बीच मुकाबले ने किसान महापंचायतों को भी नया रूप दिया है। मुजफ्फरनगर दंगों ने पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम गठजोड़ को तोड़ दिया था और बीजेपी को जीतने का मौका दिया था। तो अब ये नेता सोच रहे हैं कि क्या ताजा आंदोलन कहीं उन दूरियों को पाटकर नए राजनीतिक समीकरण नहीं बना सकता।
इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एनडीए के एक सहयोगी दल के नेता जो पश्चिमी यूपी से आते हैं, ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, “हरियाणा में बीजेपी और दुष्यंत चौटाला के विधायक सामाजिक बायकॉट झेल रहे हैं। पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और बादल परिवार नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहा है। उनका भरोसा जाट सिखों और किसानों पर है। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल भी कूद पड़े हैं। पश्चिमी यूपी में हर जाट नेता, चाहे वह राकेश टिकैत हों या चौधरी अजीत सिंह सब आंदोलन का फायदा उठाना चाहते हैं। राजस्थान में एनडीए पहले ही हनुमान बेनीवाल को गंवा चुका है। जाट बेल्ट में जो मूड है, उसे लेकर बीजेपी को चिंता होनी ही चाहिए। मुझे उम्मीद है कि वे मूड सही से भांप पाएंगे।“ अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी किसान आंदोलन के समर्थन में मजबूती से आ खडे हुए हैं। उनका यह प्रयास रालोद को वापस पटरी पर ला सकता है। इस नेता ने ईटी से आगे कहा, “पीएम के किसानों से बातचीत करने और फिर उसी भाषण में कृषि कानूनों की तारीफ करने का क्या तुक है। जब सरकार कहती है कि वह कानूनों को 18 महीने तक टालने के लिए तैयार है तो क्या इसका मतलब ये नहीं कि अठारह महीने के बाद मानेंगे? सरकार को खुले दिल से इन कानूनों को वापस लेने के लिए बात करनी चाहिए।“
हरियाणा के नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बुधवार को कांगेस विधायकों की बैठक बुलाई है। मनोहर लाल खट्टर सरकार को इस महीने के अंत तक विधानसभा सत्र बुलाकर बजट पास करवाना है। हुड्डा ने ईटी से कहा, “विपक्ष के विधायक चाहते हैं कि विधानसभा में हरियाणा के हिसाब से कृषि कानून पास हों जैसे पंजाब और राजस्थान में हुआ ताकि केंद्रीय कानून बेकार हो जाएं। हम ऐक्ट में संशोधन की भी मांग करेंगे जिसके जरिए एमएसपी का उल्लंघन अपराध हो जाए। सत्र के पहले दिन, मैं अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दूंगा।“
आईएनएलडी के अभय चौटाला, जिन्होंने अपने भतीजे दुष्यंत के पार्टी तोड़ने और बीजेपी से हाथ मिलाने के बाद विधायकी छोड़ दी थी, कहते हैं, “चौधरी देवी लाल हमेशा किसानों के साथ खड़े रहे। दुष्यंत ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने खुद को बेचकर बीजेपी के आगे सरेंडर कर दिया है। हरियाणा सरकार केवल कागजों पर है क्योंकि सत्ताधारी मंत्रियों और विधायकों को घर पर रहने के लिए भी पुलिस प्रोटेक्शन की जरूरत पड़ रही है।“
पंजाब सीएम ने मंगलवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है जिसमें बीजेपी और किनारे हो सकती है। अमरिंदर सिंह ने एक बयान में कहा, “हमारे किसान दो महीने से भी ज्यादा वक्त से दिल्ली की सीमाओं पर मर रहे हैं। उन्हें पुलिस पीट रही है और गुंडे मार रहे हैं। यह समय अहं का नहीं, बल्कि साथ आकर अपने राज्य और अपने लोगों को बचाने का है।
किसान आंदोलन के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति भी नए सिरे से गरमा रही है। लोकसभा चुनाव में रालोद सुप्रीमो चौ. अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी को इसी पश्चिमी क्षेत्र में हार का मुंह देखना पड़ा था। अब बदले माहौल ने भाजपा के माथे पर पसीना पसीना ला दिया है। पार्टी नए सिरे से रणनीति बना रही है।
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और नोएडा से विधायक पंकज सिंह को मेरठ का जिला व महानगर प्रभारी बनाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। पंकज सिंह मेरठ में रहते हुए आसपास के जनपदों को भी साधेंगे। उनके पिता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की पश्चिम की किसान राजनीति में गहरी पैठ रही है। भाकियू नेता राकेश और नरेश टिकैत भी उनके करीबी हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए राजनीतिक तौर पर उर्वर रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर का राजनीतिक संदेश यहीं से गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यहीं से शुरूआत हुई और केंद्र में फिर से भाजपा की सरकार बनी। लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 दोनों में भाजपा ने रालोद को शिकस्त दी। बागपत रालोद की राजनीति का केंद्र रहा है। भाकियू और किसानों विशेषकर जाटों ने भाजपा के पक्ष में मतदान कर नया समीकरण बनाया था।
अब किसान आंदोलन के बीच मुजफ्फरनगर की महापंचायत में शुक्रवार को नरेश टिकैत ने भरे मंच से कहा कि चौ. अजित सिंह को हराकर हमने गलती की है। रालोद में नई उर्जा का संचार होता नजर आ रहा है, वहीं भाजपा नेतृत्व के कान खड़े हो गए हैं। पूरा किसान आंदोलन इस समय जाट बिरादरी के आसापास घूम रहा है। सपा और रालोद का खुला समर्थन भाकियू को मजबूती दे रहा है।
भाजपा के जाट नेताओं के लिए यह परीक्षा का समय है। बागपत से सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह, मुजफ्फरनगर सांसद व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजीव बालियान के साथ ही पंचायतराज मंत्री और पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह सहित क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल की जिम्मेदारी पार्टी स्तर पर ज्यादा अहम हो गई है। राम मंदिर निर्माण निधि कार्यक्रम के तहत चल रहे अभियान पर भी किसान आंदोलन की छाया है। जाट बहुल कई गांवों में निधि समर्पण अभियान के तहत कार्यकर्ता जा नहीं पा रहे हैं। संघ परिवार अब जाट नेताओं को जिम्मेदारी देने की तैयारी में हैं।
अभी-अभीः भाजपा विधायक उमेश मलिक को धमकी, कहा तबाह कर देंगे…#bjp @BJP4India @BJP4UP @dgpup @UPGovt @Uppolice @UmeshMalikBJP1 @umeshmalibjp @KapilDevBjp @drsanjeevbalyan
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