20 साल में भी पुलिस नहीं पेश कर सकी सुबूत
शहर कोतवाली पुलिस ने जिस किसान सलाउद्दीन को चार कारतूस के साथ गिरफ्तार कर जेल भेजा था, उसके मुकदमे की सुनवाई सीजेएम कोर्ट में हुई। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ठाकुर जगपाल सिंह ने बताया कि गिरफ्तारी के बाद किसान के खिलाफ चार्जशीट सीजेएम कोर्ट में दाखिल की गई। कोर्ट ने चार्जशीट का संज्ञान लेते हुए 17 जुलाई 1999 को सलाउद्दीन पर आरोप तय कर दिए। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अभियोजन को किसान के खिलाफ साक्ष्य पेश करने के लिए पर्याप्त समय दिया, लेकिन अभियोजन उसके खिलाफ किसी तरह के सुबूत पेश नहीं कर सका। यहां तक कि थाना पुलिस किसान के पास से बरामद किए गए माल मुकदमाती चार कारतूस भी कोर्ट के समक्ष पेश नहीं कर पाई। अभियोजन साक्ष्य का समय खत्म होने के बाद सीजेएम कोर्ट में आरोपी के धारा-313 के तहत बयान दर्ज किए गए। इसके बाद न्यायाधीश मनोज कुमार जाटव ने साक्ष्यों के अभाव में किसान सलाउद्दीन को संदेह का लाभ देते हुए गत दस नवंबर को बरी कर दिया।
मुकदमे की पैरवी में गुजर गई आधी उम्र और कमाई
शहर कोतवाली द्वारा दर्ज किए गए फर्जी मुकदमे की पैरवी में पीड़ित किसान सलाउद्दीन की आधी उम्र गुजर कई। पीड़ित किसान का कहना है कि जिस समय पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा था, उसकी उम्र 42 साल थी। इसके बाद करीब 20 साल तक वह खुद को बेकसूर साबित करने के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाता रहा। इस क्रम में उसे कोर्ट में 250 से अधिक तारीख भुगतनी पड़ी, जिसमें उसे शुरूआती 50 रुपये से लेकर वर्तमान में 500 रुपये तक हर तारीख पर खर्च करने पड़े। मुकदमे की पैरोकारी में ही उसकी आधी जिंदगी और आधी उम्र की कमाई उड़ गई। पीड़ित ने सवाल उठाते हुए कहा कि उसकी बेगुनाही साबित होने के बाद अब 20 दिन की जेल के साथ ही कोर्ट-कचहरी तक उसकी आधी उम्र की भागदौड़ व मुकदमे की पैरवी पर हुए खर्च की भरपाई कैसे और कौन करेगा ?
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