नई दिल्ली। संसद के दोनों सदनों में प्रधानमंत्री की ओर से तीनों नए कृषि कानूनों पर सरकार का पक्ष रखने के बाद सरकार किसान संगठनों के समक्ष नया प्रस्ताव रख सकती है। नए सिरे से एक और पहल से पूर्व सरकार की निगाहें राकेश टिकैत पर है। गौरतलब है कि पीएम मोदी सोमवार को राज्यसभा तो अगले हफ्ते ही लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देने वाले हैं।
सरकार के वरिष्ठ सूत्र के मुताबिक चर्चा के जवाब में पीएम कृषि कानूनों पर विस्तार से सरकार का पक्ष रखेंगे। इस दौरान खासतौर पर आंदोलन खत्म करने के लिए सरकार की ओर से किए गए प्रयास का जिक्त्रस् होगा। साथ ही इसी में आंदोलन खत्म करने की नई पहल का भी जिक्त्रस् होगा। ऐसे में सोमवार को राज्यसभा में पीएम का भाषण बेहद अहम होगा।
उक्त सूत्र के मुताबिक सरकार ने अपनी ओर से किसानों को डेढ़ साल तक तीनों कानूनों को रद्द करने और सर्वपक्षीय कमेटी बनाने का प्रस्ताव पहले ही दिया है। अब सरकार के पास इसके इतर कोई नया प्रस्ताव नहीं है। ऐसे में सरकार की ओर से किसानों से ही नए सिरे से बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव मांगा जा सकता है।
खासबात यह है कि अगर नई पहल होती है तो इसके केंद्र में सरकार पंजाब के किसान यूनियनों की जगह राकेश टिकैत को रखेगी।
टिकैत का रुख अपेक्षाकृत लचीला
सरकार के रणनीतिकार मानते हैं कि पंजाब के किसान यूनियनों की तुलना में टिकैत का रुख अपेक्षाकृत लचीला है। छह फरवरी को राष्ट्रीय स्तर पर चक्काजाम से यूपी, दिल्ली और उत्तराखंड को दूर रख कर टिकैत ने इस आशय का संकेत भी दिया है।
इससे आंदोलन किसान मोर्चा में मतभेद के सुर भी उपजे हैं। आंदोलन के अंतिम पड़ाव में टिकैत किसानों का नया चेहरा बन कर उभरे हैं। ऐसे में सरकार टिकैत के माध्यम से बीच का रास्ता निकालने की संभावना तलाशने पर विचार कर रही है।
लंबे समय तक के लिए टल सकता है कानून
वैसे भी तीनों कृषि कानूनों के लंबे समय तक टलने के आसार बन रहे हैं। सरकार खुद डेढ़ साल तक कानून टालने के लिए तैयार है। नए सिरे से बातचीत में टालने का समय और बढ़ाया जा सकता है।
ऐसे में जब फिर नए सिरे से कानून लागू करने की बारी आएगी तो सिर पर कई राज्यों के अहम विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव की बारी आ जाएगी। जाहिर तौर पर सियासी रूप से ऐसे संवदेनशील समय में सरकार इन कानूनों को ला कर बड़ा विवाद खड़ा करने से बचेगी।