मुजफ्फरनगर : जनपद में मुस्लिम मतदाताओं का एक अहम हिस्सा है, जो इस निर्वाचन क्षेत्र में कुल मतदाताओं का लगभग 39 फीसदी है और जाटों के एक गुट ने आरएलडी नेता जयंत चौधरी के बीजेपी के साथ गठबंधन करने के फैसले पर निराशा और असंतोष व्यक्त किया. मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र के राजनीतिक सिनेरियो में आम धारणा यह है कि जाट मतदाता चुनावी नतीजों पर काफी असर डालते हैं.
उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर की सियासी जंग में एक भयंकर रस्साकशी देखी जा रही है. इस राजनीतिक लड़ाई को जिसे दो सीनियर जाट नेताओं- बीजेपी के दो बार के सांसद संजीव बालियान और समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद हरेंद्र मलिक के बीच सम्मान की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है. 2019 के चुनावों में, बालियान राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के खिलाफ 4,000 से कम वोटों के अंतर से विजयी हुए थे.
अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी के पार्टी की कमान संभालने के बाद वह 2022 के विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहे. दिलचस्प बात यह है कि आरएलडी, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी के साथ और 2022 के विधानसभा चुनावों में एसपी के साथ गठबंधन में थी, इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन किया है. सूत्रों के मुताबिक मुजफ्फरनगर सीट विवाद का मुद्दा था, जिसकी वजह से एसपी-आरएलडी गठबंधन आगे नहीं चल सका.
मुजफ्फरनगर में लोकसभा परिणाम पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगा. जाटलैंड के बीच स्थित मुजफ्फरनगर इस क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाएगा. बीजेपी के संजीव बालियान के लिए जीत सिर्फ चुनावी जीत से कहीं ज्यादा मायने रखेगी.
दूसरी तरफ, अगर समाजवादी पार्टी के हरेंद्र मलिक जीतते हैं, तो यह कई धारणाओं को तोड़ देगा. नतीजा कुछ भी हो, एक बात तय है कि रिजल्ट के बाद जाटलैंड में राजनीतिक सिनेरियो बेहत अहम बदलाव से गुजरने वाला है.