
नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर जब लाल किला में उपद्रव हुआ तो किसान आंदोलन को लेकर ऐसी खबरें आने लगी थीं कि अब ये पड़ाव यहीं पर समाप्त हो जाएगा। गाजीपुर के धरना स्थल पर मौजूद केंद्रीय सुरक्षा बल के एक अधिकारी का कहना है, टिकैत को गिरफ्तार करने की तैयारी पूरी कर ली गई थी। उन्हें पुलिस की गाड़ी में बैठाकर कहां ले जाना है, ये भी तय हो गया था। एकाएक खबर मिलती है, गिरफ्तारी टल गई है। टिकैत के गिरते आंसुओं की कवरेज के लिए मीडिया कर्मियों को इजाजत दी गई। अगले ही दिन टिकैत के सिर पर पगड़ी बंध चुकी थी। वे फिर से सरकार को ललकारने की मुद्रा में आ गए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, किसानों का मसला सुलझने में बस एक फोन कॉल की दूरी है। नरेश टिकैत ने कहा, हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात का स्वागत करते हैं। उसके बाद राकेश टिकैत गाजीपुर से निकलकर हरियाणा तक पहुंच गए और पीएम मोदी को लेकर किसान नेताओं की ’बोली’ बदल गई। किसान आंदोलन से जुड़े एक प्रमुख नेता, जो सरकार के साथ बातचीत में शामिल नहीं थे, मगर उनकी सक्रियता लगातार जारी रही। राजस्थान में उन्होंने बड़े किसान आंदोलनों का नेतृत्व किया है। बुधवार को उन्होंने एक अनौपचारिक बातचीत में कई राज खोले। उनका कहना था कि देश का किसान चाहता है कि वे सभी एक जगह पर दिखें। इसके पीछे तथ्यों का अभाव भले ही नजर आए, लेकिन भावनाओं का पूरा सैलाब होता है। ये सच्चाई है कि जन आंदोलन भावना से चलते हैं। तथ्य दूसरे नंबर पर चले जाते हैं। गणतंत्र दिवस के बाद इन भावनाओं में और ज्यादा तेजी आ गई। आंसू आधार बन गए। जो भी हो, लेकिन किसान के मन के भाव जीतेंगे, हमें यह भरोसा है। किसानों के साथ प्रतिकूल नहीं होगा, अनुकूल कितना होगा, ये देखने वाली बात है।
किसान नेता के मुताबिक, जब यह आंदोलन बीच में लचक रहा था तो उस वक्त कई साथी राकेश टिकैत को कमजोर कड़ी मान रहे थे। उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा की सहमति के बिना ही मीडिया में कुछ बयानबाजी कर दी थी। अगर लालकिला वाला उपद्रव नहीं हुआ होता तो किसान संगठनों की बड़ी फूट का सामने आना तय था। किसान आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए कई ऐसे नेता आगे आए, जिनकी अंगुली पर कभी कंकड़ ही नहीं लगा था। वे किसानों की जमीनी समस्या से वाकिफ नहीं थे। सरकार चाहती थी कि ऐसे ही नेता बातचीत में शामिल रहें। यही वजह रही कि बातचीत करने वाले किसानों की संख्या 32 से 40 तक जा पहुंची। सरकार के साथ बातचीत करने वाले सभी नेता फील्ड और टेबल के मास्टर नहीं थे। इन सभी के सामने अलग-अलग फाइल रखी गई कि वे बताएं, ये कानून क्यों वापस लें। किसान नेता के अनुसार, ज्यादातर वार्ताकार यह जवाब तैयार नहीं कर पाए। किसी ने होमवर्क पर ध्यान नहीं दिया। सोशल मीडिया में छा जाना अलग बात है। टेबल पर बातचीत आसान काम नहीं है। जब तक यह आंदोलन पंजाब के किसान नेताओं के पास रहा तो उन्होंने राजनेताओं को निकट नहीं आने दिया। पंजाब मॉडल पर चलने वाला किसान आंदोलन सही राह पर था। गणतंत्र दिवस के बाद पंजाब मॉडल टूट गया। कई नेता, इस आंदोलन में खुद का रंग ले आए। आंदोलन की पवित्रता कम होती चली गई। लाल किला की घटना का भांडा पंजाब के किसान नेताओं के सिर पर ज्यादा फूटा। घटना के बाद जब किसान संगठन बिखराव की राह पर चल पड़े थे तो उसी समय राकेश टिकैत आगे आ गए। सरकार के साथ वार्ता में शामिल पंजाब से जुड़े एक किसान नेता ने कहा, हम आंदोलन को सफल होते देखना चाहते हैं। सरकार ने बंदूक, किसी के कंधे पर रख कर चलाई है, इसे लोग समझते हैं। सारा आंदोलन एक ही व्यक्ति के चारों तरफ घूमने लगा, वही प्रमुख चेहरा बन गया, ये सामान्य बात नहीं है। राकेश टिकैत अकेले ही हरियाणा में पहुंच गए। बाकी नेता कहां थे। आने वाला समय ही यह साबित करेगा कि टिकैत सरकार के लिए सॉफ्ट होते हैं या वे अपना आक्रामक रुख जारी रख पाते हैं। जब टिकैत ने इस आंदोलन की कमान संभाली तो उन्होंने अपने मंच पर आने से किसी को नहीं रोका। यहां से नई शंकाओं ने जन्म ले लिया। उधर, राकेश टिकैत ने बुधवार को जींद के कंडेला गांव में हुई किसान महापंचायत में साफ कर दिया है कि उनका आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकार उनकी सभी मांगों को नहीं मान लेती। इसमें तीनों कानूनों को रद्द करना भी शामिल है।
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