मुज़फ्फरनगर : मुजफ्फरनगर में इस बार त्रिकोणीय लड़ाई, सपा, बसपा के बीच बटेगा मुस्लिम वोट, जाटों को लुभा ले जाएंगी BJP-RLD? इस बार का चुनाव 2019 के चुनाव से बिल्कुल अलग है। अलग इस दृष्टिकोण से कि पिछले चुनाव में BSP भी सपा और RLD के गठबंधन में शामिल थी, लेकिन इस बार BSP अलग चुनाव लड़ रही है। अलग इस दृष्टिकोण से कि बीजेपी को अंदर से ही कुछ लोग चुनौती दे रहे हैं.
मुजफ्फरनगर वो लोकसभा सीट है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के संजीव बालियान ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के दिग्गज नेता और सपा-बसपा-RLD गठबंधन के प्रत्याशी अजीत सिंह को हरा दिया था। लेकिन वही संजीव बालियान इस समय अपनी ही पार्टी की आंतरिक कलह से जूझ रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे सुलझाने की कोशिश की है। मुजफ्फरनगर के अमित सिंह कहते हैं कि योगी से बड़ा कोई नेता नहीं है। उनकी एक आवाज विवाद को खत्म करने के लिए काफी है और विवाद खत्म भी हो चुका है।
अब क्या होगा यह कहना कठिन है। लेकिन फिलहाल यहां लड़ाई भाजपा के संजीव बालियान, I.N.D.I.A. गठबंधन के हरेंद्र मलिक और BSP के दारा सिंह प्रजापति के बीच हो रही है। लेकिन बहुजन समाज पार्टी के सामने एक बड़ी समस्या ये है कि मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में लाने की कोशिशें, अब तक बेकार हो चुकी हैं।
इसलिए कहीं चुनाव मतदान आते-आते यह लड़ाई आमने-सामने यानि संजीव बालियान और हरेंद्र मलिक के बीच न हो जाए। लेकिन बसपा समर्थकों का दावा अलग है। बसपा के ही एक कैडर राम सिंह कहते हैं कि बसपा दिन-प्रति दिन मजबूत हो रही है और उसकी लड़ाई सिर्फ बीजेपी से है। मुसलमान भी यह समझ रहे हैं कि अगर उन्होंने हाथी को वोट दे दिया, तो बीजेपी हार जाएगी।
यह चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव से बिल्कुल अलग है। अलग इस दृष्टिकोण से कि पिछले चुनाव में BSP भी सपा और RLD के गठबंधन में शामिल थी, लेकिन इस बार BSP अलग चुनाव लड़ रही है। अलग इस दृष्टिकोण से कि बीजेपी को अंदर से ही कुछ लोग चुनौती दे रहे हैं।
एक बात और नजर आती है कि दलित मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा इस बार BSP के साथ जा रहा है। वास्तव में कांग्रेस सपा गठबंधन से हरेंद्र मलिक वो चेहरा हैं, जो हमेशा अजीत सिंह परिवार के खिलाफ राजनीति में मुखर रहे और सपा बसपा गठबंधन टूटने का एक कारण हरेंद्र मालिक भी थे।
समाजवादी पार्टी ने चुनावी गठबंधन के तौर पर RLD को सात सीट छोड़ी थी, लेकिन इसके साथ ही उन सीटों पर अपने चार नेताओं के नाम भी जयंत चौधरी को पकड़ा दिए थे, जिन्हें चुनाव लड़वाना था। इनमें एक हरेंद्र मलिक का नाम भी था। अब चुनौती इस बात को लेकर है कि क्या जाट वोटों का बंटवारा हरेंद्र मलिक कर पाएंगे? वो भी तब जब जयंत चौधरी बीजेपी के पाले में खड़े हैं।
फिलहाल जाटों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के संजीव बालियान के पक्ष में जा रहा है। मुजफ्फरनगर के ही राजीव सिंह कहते हैं की बालियान जाट वोटों का बड़ा हिस्सा ले जाएंगे, जबकि पिछली बार लगभग 70 प्रतिशत जाट अजीत सिंह के साथ गया था और मुसलमान मतदाताओं में कोई बंटवारा नहीं हुआ था।
जबकि मुजफ्फरनगर के मोहम्मद नईम कहते हैं कि बंटवारा तो इस बार भी नहीं होगा। ज्यादातर मुस्लिम वोट सपा प्रत्याशी के पक्ष में जाएगा, लेकिन इन सब के बीच भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व अपनी पार्टी के अंदर ही उठे विवादों को सुलझाने में लगा है।
संजीव बालियान से सरधना विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक संगीत सोम नाराज चल रहे हैं। क्षत्रियों के बीजेपी से नाराजगी की बात कही जा रही है, उसके पीछे संगीत सोम का हाथ होने के आरोप लगे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी जनसभा में कड़े शब्दों में कह गए हैं कि जात के नाम पर बंटवारा नहीं होने देना। पार्टी की लाइन से कोई बाहर नहीं जाएगा। सब लोग एकजुट रहें।
हालांकि सवाल यह पूछे जा रहे हैं कि क्या संगीत सोम संजीव बालियान को नुकसान पहुंचा पाएंगे? वास्तव में संगीत और संजीव के बीच यह राजनीतिक झगड़ा 2022 के विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ था। संगीत सोम चुनाव हार गए और धीरे-धीरे किनारे हो गए।
उनके समर्थकों ने आरोप लगाया की संगीत सोम को हरवाने में संजीव बालियान की बड़ी भूमिका रही है। मेरठ जिला का बीजेपी अध्यक्ष के नियुक्ति पर भी विवाद और बड़ा हो गया। अब जब चुनाव आ गए हैं, तो यह लड़ाई खुलकर सामने आई है, लेकिन सरधना क्षेत्र के ही एक क्षत्रिय मतदाता कहते हैं कि बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि लोग योगी को देख रहे हैं, संगीत सोम को नहीं।
संजीव बालियान 2014 का लोकसभा चुनाव लगभग चार लाख वोटों से जीते थे, लेकिन पिछला लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह ने इतनी कड़ी टक्कर दी कि वह सिर्फ 5000 वोटों से चुनाव जीत सके। यह विडंबना ही है कि अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी किसी सूरत पर संजीव बालियान को चुनाव जितवा देना चाहते हैं।
कारण यह है की हरेंद्र मालिक संजीव बालियान के सामने हैं और चौधरी परिवार ने कभी भी उन्हें पसंद नहीं किया। यह माना जाता है कि हरेंद्र मलिक हमेशा अजीत सिंह परिवार के विरोधी रहे।
असल में हरेंद्र मालिक के साथ जाट मतदाताओं का एक वर्ग है। इसके साथ ही जो अब तक दिख रहा है, वो ये कि मुस्लिम मतदाता एकजुट हरेंद्र मलिक के साथ जाएगा, लेकिन केवल इससे हरेंद्र मलिक चुनाव नहीं जीत सकते। जब तक कोई दूसरे वर्ग का मतदाता गठबंधन से न जुड़े और यही मुश्किल भी लग रहा है।
मुजफ्फरनगर के ही देवेंद्र सिंह कहते हैं की अजीत सिंह को 70 प्रतिशत से ज्यादा जाट मतदाताओं ने वोट दिया था। 80 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान मतदाता उनके साथ था। इसके साथ BSP समर्थकों का वोट भी उन्हें मिला था, इसके बावजूद वह चुनाव हार गए थे।
अब लगभग 70 फीसदी से ज्यादा जाट मतदाता संजीव बालियान के साथ जा रहा है। इसलिए यह कहना मुश्किल है की हरेंद्र मालिक कोई बड़ा उलट फेर कर देंगे, लेकिन सपा के समर्थक एक अलग ही कथा कहते हैं। उनका कहना है की हरेंद्र मलिक को जाट वोट मिल रहा है। पिछड़े वर्ग का वोट भी मिलेगा और मुस्लिम वोट भी मिलेगा। इसलिए मलिक चुनाव जीत जाएंगे।
फिलहाल यहां लड़ाई त्रिकोणीय दिखती है। बहुजन समाज पार्टी ने दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारा है। दारा सिंह को BSP का वोट मिल रहा है, लेकिन इसके अलावा उन्हें कौनसा वोट मिलेगा, यह कहना मुश्किल है। क्योंकि प्रजापति मतदाताओं संख्या यहां बहुत कम है और उसमें भी बीजेपी ने सेंध लगा रखी है।
बसपा की कोशिश यह है कि मुस्लिम मतदाता अगर बसपा के साथ आ जाए, तो सीट निकल सकती है, लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा है। मुस्लिम मतदाता से बात करने पर यह साफ लगता है कि उनका रुझान सपा के साथ है, न कि बसपा के।