लखनऊ। 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ था। चुनावों के बाद यह गठबंधन टूट गया था। अब इस पर अखिलेश और मायावती दोनों ने ही गठबंधन टूटने की वजह बताई हैं।
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि लोकसभा चुनाव-2019 में सपा-बसपा का गठबंधन टूटने पर सालों बाद अखिलेश यादव की सफाई कितनी विश्वसनीय और उचित है। चुनाव में बसपा की 10 और सपा की 5 सीटों पर जीत के बाद गठबंधन टूटने के बारे में मैंने सार्वजनिक तौर पर भी यही कहा था कि सपा प्रमुख ने मेरे फोन का भी जवाब देना बंद कर दिया था।
बसपा सुप्रीमो ने बृहस्पतिवार को दिए गए अखिलेश यादव के बयान पर पलटवार करते हुए आज सोशल मीडिया पर लिखा कि अब इतने सालों बाद सफाई देना कितना उचित व विश्वसनीय है, यह सोचने वाली बात है। बसपा सैद्धांतिक कारणों से गठबंधन नहीं करती है। अगर बड़े उद्देश्यों को लेकर कभी गठबंधन करती है तो फिर उसके प्रति ईमानदार भी जरूर रहती है। सपा के साथ 1993 व 20219 में हुए गठबंधन को निभाने का भरपूर प्रयास किया गया, लेकिन बहुजन समाज के हित व आत्मसम्मान सर्वोपरि है। बसपा जातिवादी संकीर्ण राजनीति के विरुद्ध है। लिहाजा चुनावी स्वार्थ के लिए आपाधापी में गठबंधन करने से अलग हटकर बहुजन समाज में आपसी भाईचारा बनाकर राजनीतिक शक्ति बनने का मूवमेंट है। ताकि डॉ. भीमराव अंबेडकर का मिशन सत्ता की मास्टर चाबी प्राप्त कर आत्मनिर्भर हो सके।
बसपा सुप्रीमो ने आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने की नई व्यवस्था का दुरुपयोग होने का आरोप लगाया है। उन्होंने उपचुनाव के संबंध में जारी अपनी बुकलेट में लिखा कि दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों को सामाजिक व शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर मिल रहे संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने की नई परंपरा की शुरुआत भाजपा और कांग्रेस ने मिलकर की है। आरक्षण का यह नया अध्याय गरीबी उन्मूलन की सरकारी स्कीम है। इस व्यवस्था का दुरुपयोग भी किया जा रहा है। यह रोग आईएएस अफसरों तक फैल जाने से पूरी व्यवस्था ही कटघरे में खड़ी हुई नजर आ रही है। यह गवर्नेंस के मामले में शर्मिंदा होने वाली बात है।
उन्होंने लिखा कि हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष द्वारा जूता मरम्मत का स्वरोजगार करने वाले व्यक्ति की दुकान पर जाना और बाद में उसे जूता सिलाई की मशीन भिजवाना सामाजिक बदलाव का बड़ा कदम बताया गया। बसपा और अन्य दलों की सोच में यही अंतर है। ये लोग हाथ की जगह मशीन से जूता मरम्मत करवाने को सामाजिक बदलाव का बड़ा काम मानकर चलते हैं, जबकि बसपा का सामाजिक परिवर्तन का मिशन कहता है कि जूता मरम्मत या सफाई आदि का कार्य एक जाति विशेष का व्यक्ति ही अपने जन्म के आधार पर क्यों करे।