नई दिल्ली. आपने करेंसी नोटों पर आरबीआई गवर्नर के हस्ताक्षर देखे होंगे. इन हस्ताक्षरों के ऊपर एक वचन भी लिखा होता है. यह वचन कुछ यूं होता है, “मैं धारक को…रुपये अदा करने का वचन देता हूं.” खाली स्थान में 10 रुपये से लेकर 2000 रुपये के नोट में से कुछ भी डाल दीजिए. लेकिन इसका मतलब क्या होता है. आरबीआई आखिर धारक को वचन देता क्यों है. अगर ये ना लिखा हो तो क्या होगा? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब के बारे में आप आगे जानेंगे.
यह आरबीआई द्वारा कैश बियरर या धारक को दी गई गारंटी होती है. ये वचन और हस्ताक्षर ही उसे नोट को उसकी वैल्यू देते हैं. इससे आरबीआई यह जताता है कि आप निश्चिंत होकर इसका इस्तेमाल कीजिए क्योंकि इस नोट के मूल्य वर्ग के बराबर केंद्रीय बैंक के पास सोना और फॉरेन करेंसी रिजर्व में रखा हुई है. यानी जब तक नोट पर यह वचन और हस्ताक्षर लिखा हुआ है उस नोट के मूल्य को अदा करने की जिम्मेदारी आरबीआई की है. अगर यह न हो तो रुपये की कोई वैल्यू नहीं होगी. अब इससे एक सवाल और बनता है.
हर नोट के मूल्य की गारंटी देने के लिए बैकअप की जरूरत होती है. बगैर बैकअप के वह नोट एक कागज का टुकड़ा समान है. ये बैकअप रिजर्व के रूप में रखा जाता है. इसी रिजर्व के आधार पर नोटों की करेंसी की प्रिटिंग भी होती है.
इसे मिनिमम रिजर्व सिस्टम कहा जाता है. इसकी शुरुआत 1956 में हुई थी. आरबीआई तभी नए नोट छाप सकती है जब उसके MRS में 200 करोड़ रुपये हों.
यही मिनिमम रिजर्व सिस्टम है जो आरबीआई को इतना मजबूत बनाता है कि वह कभी डिफॉल्ट नहीं कर सकता. MRS के दम पर गवर्नर धारक को रुपये अदा करने का वचन देता है. यह एक भरोसा होता है कि आपके पास जितने का नोट उतनी वैल्यू का सोना जमा है. बता दें कि एमआरएस में भारतीय करेंसी नहीं होती है. इसमें 115 करोड़ रुपये का सोना होता है. वहीं, बाकी बचे 85 करोड़ रुपये फॉरेन करेंसी के रूप में रिजर्व होते हैं. फॉरेन करेंसी में अलग-अलग देशों की मुद्रा होती है.