गाजियाबाद। गाजियाबाद के लोनी के बेहटा हाजीपुर गांव में पार्किंग ठेकेदार सारिक के दो मंजिला मकान में बुधवार रात आठ बजे भीषण आग लग जाने से दो मासूम बच्चे और दो महिलाओं समेत पांच लोग जिंदा जल गए। ये पांचों धुएं की वजह से बाहर नहीं निकल सके। रात 12 बजे इनके शव निकाले गए। एक युवती और एक बच्चा बुरी तरह झुलस गए हैं। आग लगने की वजह मकान की पहली मंजिल पर रखीं मशीनों में बिजली का शार्ट सर्किट होना मानी जा रही है।
एसीपी भास्कर वर्मा ने बताया कि मृतकों में सारिक की पत्नी फरहीन (25), सात माह का बेटा सीज, बहन नाजरा (35), बहनोई सैफ (36) और भांजी इसरा (चार) शामिल हैं। सारिक की दूसरी बहन उज्मा और नाजरा का बेटा अर्श रहमान बुरी तरह झुलस गए हैं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
गाजियाबाद के लोनी के बेहटा हाजीपुर गांव पार्किंग ठेकेदार सारिक के मकान में उनके परिवार के पांच लोगों की जिंदगी बचाओ-बचाओ चिल्लाते खामोश हो गई। आग की लपटों और धुएं के गुबार में सात लोग फंस गए थे। सातों जान बचाने के लिए छत की तरफ दौड़े लेकिन पांच का रास्ता धुएं ने रोक लिया। दो ही छत तक पहुंचे। उन्हें पड़ोसियों की मदद से बचा लिया। बाकी पांचों का दम घुट गया। इसके बाद पांचों बुरी तरह झुलस गए।
रात आठ बजे पहली मंजिल पर आग लगी तो उन्हें इसका पता ही नहीं चला। आग जब दूसरी मंजिल पर पहुंची तो वे घबरा गए। उन्होंने बाहर निकलने का प्रयास किया लेकिन धुआं अंदर तक आ चुका था। ऐसे में छत की तरफ दौड़े लेकिन वहां भी धुआं भर चुका था। उज्मा ने बताया कि अर्श रहमान उनकी गोदी में था। वह उसे लेकर छत तक पहुंच गई। दोनों आग की लपटों से झुलस गए। उनकी चीख सुनकर आसपास के लोग छत पर आ गए। वे लोग सीढ़ी की मदद से उन्हें पहले घर ले गए और फिर अस्पताल पहुंचाया।
आग में फंसे बाकी लोग छत तक नहीं पहुंच सके। आसपास के लोगों ने बताया कि अंदर से कुछ देर तक चीख सुनाई दे रही थी। थोड़ी देर बाद आवाज आनी बंद हो गई। अगर दमकल समय से आ जाती तो शायद उनकी जान बच जाती।
लोग बाल्टियों से पानी डाल रहे थे। इतने से पानी से आग बुझ नहीं रही थी। दो दमकलों ने आग पर काबू पाया। इसके बाद भी धुएं की वजह से कोई अंदर नहीं जा रहा था। रात 12 बजे दीवार को तोड़कर शवों को बाहर निकाला जा सका। आग से पहली मंजिल पर गाड़ी भी जल गई।
लोगों ने बताया कि आग लगने के दस मिनट बाद ही सूचना दे दिए जाने के बावजूद दमकल दो घंटे बाद पहुंची। दो दमकलों ने एक घंटे में आग पर काबू पाया। धुआं होने की वजह से शव निकालने में देरी हो गई। दमकल के देरी से पहुंचने की वजह रास्ता अवरुध होना रही। कुछ लोगों ने रास्ते में गार्डर डाल रखे हैं। इस वजह से दमकल को पांच किलोमीटर घूमकर आना पड़ा। सारिक रात आठ बजे दूध लेने के लिए घर से निकले थे। वह थोड़ी देर बाद ही लौट आए। लेकिन इसी बीच उनकी दुनिया उजड़ गई। वह लौटे तो आंखों से सामने जलता हुआ मकान था। अंदर से कुछ आवाज आ रही थी।
शायद अंदर फंसे लोग बचाओ…बचाओ पुकार रहे हों, लेकिन बाहर के शोर की वजह से अंदर की आवाज साफ सुनाई नहीं दे रही थी। करीब तीन घंटे बाद आग बुझी। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अंदर पत्नी, बेटे, बहन, बहनोई और भांजी के शव पड़े थे।
आग लगने के करीब आधे घंटे बाद सारिक की बहन उज्मा बाहर निकलीं। उनकी गोदी में बहन नाजरा का बेटा अर्श रहमान था। दोनों काफी झुलस चुके थे। इसके बावजूद उज्मा ने हिम्मत नहीं हारी। गोदाम से लेकर मकान की दूसरी मंजिल तक आग की विकराल लपटें थीं। धुआं सीढ़ियों तक भरा हुआ था। इस धुएं में कुछ नजर भी नहीं आ रहा था। लोग बाहर से पानी डाल रहे थे। ऐसे हालात के बीच उज्मा बचाओ..बचाओ चिल्लाते हुए छत तक पहुंच गईं।