मुजफ्फरनगर : पश्चिमी यूपी में पहली बार लोकसभा चुनाव के बीच जातीय पंचायतों का सिलसिला ज्यादा जोर पकड़ रहा है। अमर उजाला की खास रिपोर्ट में पढ़िए इन पंचायतों का चुनाव पर कितना असर पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव के रणक्षेत्र में जातीय समीकरण उलझ गए हैं। सदियों का इतिहास समेटे पश्चिम में 36 बिरादरी की सामाजिक पंचायतों की अहम भूमिका रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान पहली बार जातीय पंचायतों का सिलसिला ज्यादा जोर पकड़ रहा है। रोजाना समर्थन और विरोध की आवाजें गूंज रही हैं। राजनीतिक दलों के टिकट वितरण की बात भी पंचायतों में उठाई गई। सबके अपने सवाल हैं। टिकट की नाराजगी है तो कहीं विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों का असर।
मुजफ्फरनगर सहारनपुर के नानौता में क्षत्रिय महाकुंभ में राजपूत समाज के लोग जुटे थे। किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष ठाकुर पूरण सिंह की अगुवाई में लोगों ने सम्राट मिहिर भोज प्रकरण उठाया। गुर्जर समाज के साथ चल रहे मतभेद की गूंज हुई। सहारनपुर, कैराना और मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के लिए इस महाकुंभ को महत्वपूर्ण माना गया। यहां राजनीतिक विरोध का एलान भी हुआ, लेकिन धरातल पर इसका कितना असर होगा, यह नतीजे ही बताएंगे। मेरठ के सिसौली और बुढ़ाना के कुरालसी गांव में भी राजपूत समाज की पंचायत हुई।
राजपुर छाजपुर में राजपूत समाज की बैठक हुई। यहां नानौता के क्षत्रिय कुंभ के फैसले का विरोध किया गया। इसमें अध्यक्ष नरेंद्र कुशवाहा शामिल हुए। राजपूत समाज के पंचायत में शामिल लोगों ने यहां अपनी बात रखी। नानौता पंचायत के फैसले को गलत बताया। ऐसे में दो धड़ों बंटता दिख रहा है।
गांव कुरालसी में किसान मजदूर व राजपूत समाज की पंचायत हुई। निर्णय लिया गया कि कुशवाह चौबीसी ठाकुर पूरण सिंह के साथ है। नानौता में लिए गए निर्णय पर राजपूत समाज अडिग रहेगा। जब तक राजपूत समाज को राजनीति में और महापुरुषों का सम्मान वापस नहीं होगा, जब तक राजपूत समाज नानौता पंचायत के फैसले का पालन करेगा। किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर पूरण सिंह, पूर्व चौबीसी अध्यक्ष ठाकुर घासीराम, राजकुमार, डॉ. विनोद, दीपक सोम, राजपूत समाज उत्थान सभा के अध्यक्ष अजय सोम, तहसील अध्यक्ष कृष्ण कुमार, जिलाध्यक्ष अनिल कुमार, सतेंद्र कुमार, कुशवाह चौबीसी महासचिव रामबीर सिंह शामिल हुए।
सबसे महत्वपूर्ण पंचायतों में शाहपुर में हुई मुस्लिम समाज की पंचायत भी रही। यहां मुस्लिम समाज के लोग जुटे और लोकसभा चुनाव में भाजपा के समर्थन करने का एलान किया गया।
मंसूरपुर क्षेत्र के सोहंजनी तगान गांव में त्यागी समाज की पंचायत आहूत की गई। त्यागी समाज के प्रत्याशी भी पंचायत में पहुंच गए थे। सामाजिक एकता और किसान हितों की चिंता की गई। राजनीति में समाज की स्थिति पर भी मंथन हुआ। तीखे बयान भी आए।
खतौली क्षेत्र के टिटौड़ा में गुर्जर समाज के लोगों की पंचायत हुई। इसमें सपा और कांग्रेस के नेता भी शामिल हुए थे। वक्ताओं ने यहां अपने-अपने मुद्दे रखें।
बृहस्पतिवार को गढ़ रोड स्थित बारह क्षेत्र के सिसौली गांव में क्षत्रिय समाज के लोग जुटे और इसमें राजनीतिक दलों द्वारा समाज की उपेक्षा पर चिंतन किया गया। वक्ताओं ने बिरादरी की एकजुटता पर बल दिया गया।
भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने बागपत में बयान दिया कि मुस्लिम अब कभी रालोद पर भरोसा नहीं करेंगे। रालोद के एनडीए में शामिल होने के बाद यह बयान दिया गया है। जबकि पहले चरण का प्रचार तेजी पर है।
रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने चिट्ठी जारी कर विधायकों को संदेश दिया कि अपनी निधि अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति के लोगों पर आधी से अधिक खर्च करें। यह पत्र भी लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान ही जारी किया गया।
राजपूत समाज की पंचायतों को भाजपा हाईकमान ने गंभीरता से लिया है। इसके लिए गृह मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमान संभाल रखी है। हाल ही सहारनपुर में आयोजित सभा में ठाकुर राजनाथ सिंह जिंदाबाद के नारे लगे तो राजनाथ सिंह ने भी नजाकत भांप अपने भाषण की टोन बदल दी और राजपूत समाज से भावुक लहजे में समर्थन की अपील की। उधर, राजपूत समाज को साधने के लिए योगी भी मैदान में उतरे हैं। सरधना के बाद शुक्रवार को गंगोह और बड़गांव में जनसभा की। 16 अप्रैल को राजपूत बाहुल्य बिरालसी में जनसभा करेंगे।
समाजशास्त्री डॉ. कलम सिंह कहते हैं कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दलों ने जाति की दीवार ढहाने का प्रयास ही नहीं किया। जिम्मेदार लोगों ने अंतरजातीय विवाह की पहल नहीं की। पिछले कुछ सालों में प्रत्येक समाज में जागरूकता बढ़ी है। अपनी बात कहने के माध्यम बढ़ गए हैं। राजनीतिक हिस्सेदारी की बात चल रही है, इसी वजह से पंचायतें होती है। लेकिन आने वाले समय के लिए यह किसी बड़े खतरे से कम नहीं है। दो या तीन चुनाव बाद ही स्थिति खतरनाक हो सकती है। जातियों में समाज बंटने से नुकसान होगा। राजनीतिक दल अपने कैडर तैयार नहीं करते। संगठन के चुनाव नहीं कराते। आने वाले दिनों में सामाजिक संकट खड़े होंगे।
सामाजिक और राजनीतिक मंचों से भी बिरादरियों की संख्या 36 बताई जाति है। पंचायतों में 36 बिरादरी की एकजुटता की बात भी उठती है।