मुजफ्फरनगर : गुड़ मंडी दशकों से एशिया की सबसे प्राचीन और सबसे बड़ी गुड़ मंडी मानी जाती रही है। कभी अनाज मंडी, आलू मंडी, दाल मंडी, मातावाला घेर, सुल्टीनगंज, लोहिया बाजार व शामली रोड के बीच का इलाका मुजफ्फरनगर का पुराना व्यापारिक क्षेत्र था। वस्तुतः यह सुल्टीनगंज की अनाज मंडी थी, जहां अन्य जिन्सों के साथ-साथ गुड़-शक्कर, खांड, बूरा, बताशे बिकते थे। क़स्बा बुढ़ाना व उसके आसपास के ग्रामों में बनने वाला ‘कन्द’ भी मुजफ्फरनगर मंडी में मिल जाता था। ‘कंद’ एक प्रकार की रिफाइंड राब होती थी, जो अब लुप्त प्राय: हो चुकी है। चीनी को तब कोई जानता नहीं था, क्योंकि भारत में उस समय कोई चीनी मिल नहीं स्थापित हुआ था। हलवाई मिष्ठान बनाने में खांड का प्रयोग करते थे। इस प्रकार मुजफ्फरनगर के मौहल्ला सुल्टीनगंज में गुड़ व अनाज की मंडी शताब्दियों तक चलती रही।
जनसंख्या वृद्धि और व्यापार-कारोबार के विस्तार के कारण, विशेषकर गुड़ खंडसारी व्यवसाय के फैलाव एवं देसावर से मांग बढ़ने की वजह से नई गुड़ मंडी की आवश्यकता महसूस हुई। मंडी सुल्टीनगंज की जगह कम पड़ती जा रही थी।
इन परिस्थितियों में नई गुड़ मंडी की स्थापना की कार्य योजना आरम्भ हुई। सन् 1920-30 का दौर परिवर्तन तथा विकास का दौर था। उस समय के व्यापारियों तथा तत्कालीन जिला अधिकारी मि. मार्श ने नई मंडी बसाने का निश्चय किया। रेलवे स्टेशन से पूर्व खेतों का अधिग्रहण कर नई मंडी स्थापित करने का निश्चय किया गया। दुकानों, मकानों व सड़कों के लिए प्लाटिंग की गई। कांग्रेस के पूर्व विधायक एवं उद्यमी स्व. सोमांश प्रकाश ने हमे बताया था कि उनके ताऊ जी ने 800 रुपये प्रति प्लॉट की दर से 940 गज के दो प्लॉट नई मंडी में खरीदे थे। प्लाटिंग के बाद निर्माण शुरू हुआ। सन् 1923 में नई मंडी की विधिवत स्थापना हुई जिसमें लाला दुर्गा प्रसाद, लाला माधोलाल जैन आदि अनेक व्यापारियों का सहयोग रहा।
कई दशकों तक नई गुड़ मंडी व्यापार का बड़ा केन्द्र रहा। मंडी में गुड़-खंडसारी की आमद बढ़ने के साथ ही चीनी की ट्रेडिंग शुरू हुई क्योंकि भारत में क्रिस्टल शुगर (दानेदार चीनी) बनाने की शुरुआत हो चुकी थी । देवरिया के प्रतापपुर में सन् 1903 में भारत की पहली चीनी मिल स्थापित हुई। उद्योगपति घनश्याम दास बिरला ने हरगाँव (सीतापुर) में अवध शुगर मिल लगाई और मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर में सरशादी लाल ने सन् 1930 में सरशादी लाल शुगर मिल तथा सन् 1933 में शामली में अपर दोआब शुगर मिल स्थापित किया । सन् 1930 में अमृतसर (पंजाब) से आकर सरदार श्याम सिंह ने 1930 में रोहाना (मुजफ्फरनगर) में अमृत शुगर मिल स्थापित किया।
मुजफ्फरनगर जिले में 3 चीनी मिलों की स्थापना से नई मंडी में चीनी का कारोबार भी शुरू हुआ, साथ ही मंडी में भीड़भाड़ भी बढ़ने लगी। स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्र भारत की पहली लोकसभा के पहले सांसद बाबू सुमत प्रसाद जैन, लाला इन्द्र प्रकाश, लाला गुलशन राय जैन, लाला भागचन्द जैन, अष्टमीचंद जैन आदि प्रतिष्ठित लोगों के साथ ही मुजफ्फरनगर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. विष्णुदत्त ने भी मंडी में अपने आवास बनाये। जनसंघ के नेता शिव प्रसाद गुप्ता की कोठी भी यहीं है जहां आए.एस.एस. व जनसंघ के बड़े नेता आते रहते थे । एक बार मैं देश के प्रसिद्ध श्रमिक नेता दत्तोपन्त ठेंगड़ी से गुप्त जी के आवास पर मिला था। लाला सलेकचन्द, इन्द्रदेव टंडन, मायाराम दुर्गा प्रसाद, गोर्धन श्यामलाल के नामों से मुजफ्फरनगर की गुड़ मंडी पूरे देश में मशहूर रही।
चीनी की फॉरवर्ड ट्रेडिंग होने के साथ पत्रकार राधेश्याम माहेश्वरी ने मार्केट रिपोर्टिंग का काम शुरू किया। अब यह रिपोर्टिंग सुभाषचंद्र जैन करते हैं। नई मंडी में भीड़भाड़ बढ़ने से परेशानियां भी बढ़ने लगी क्योंकि यह मात्र व्यावसायिक स्थल न रह कर रिहायशी बस्ती बन चुकी थी। इसी बीच उत्तर प्रदेश में नवीन मंडी स्थलों की योजना शुरू हुई। ग्राम कूकड़ा के जंगल को अधिग्रहित कर नये विशाल मंडी स्थल का निर्माण हुआ जो कृषि मंडी उत्पादन समिति कहलाई। सन् 1964 में एक और मंडी स्थापित हुई जिसे आम भाषा में कूकड़ा मंडी बोला जाता है। वर्षों तक नई मंडी स्थल बना पड़ा रहा जिसमें कोई भी व्यापारी शिफ्ट होने को तैयार नहीं था। मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी नवीन मंडी स्थल पर कारोबार स्थानान्तरित करने का आग्रह करते रहे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास जब व्यवसायिओं की बैठक में नई मंडी मुजफ्फरनगर आये तो उनसे आग्रह किया गया कि व्यापारियों को नवीन मंडी स्थल स्थानान्तरित न किया जाए। मुख्यमंत्री जी की इस बैठक में मैं भी उपस्थित था। उन्होंने साफ-साफ कहा- यह नहीं हो सकता मैं बार-बार रोकता आ रहा हूँ। नवीन मंडी स्थल खाली पड़ा है, वहां शिफ्ट होना ही पड़ेगा। बाद में मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिला अधिकारी प्रभात कुमार चतुर्वेदी ने नई मंडी के व्यापारियों पर इतना दबाव बनाया कि उन्हें कृषि मंडी उत्पादन समिति में शिफ्ट होना पड़ा।
बदलती हुई परिस्थितियों में गुड़ मंडी, गुड़ उत्पादन, गुड़ व्यवसाय और गुड़ का स्वाद भी बदल चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘एक जिला, एक उत्पाद’ योजना में मुजफ्फरनगर के लिये गुड़ का चयन किया। जैविक गुड़ व नये कोल्हू की बातें हुईं लेकिन परिणाम अपेक्षित नहीं निकला। जिस गुड़ के लिए मुजफ्फरनगर का दूर-दूर तक नाम था, वह अब मुनाफाखोर माफियाओं के हाथों में आ गया है। दि गुड़ खंडसारी एंड ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय मित्तल का कहना है कि गुड़ व्यवसाय पर माफिया काबिज़ हो गए हैं। वास्तविकता यह है कि गुड़ के नाम पर जहर बिक रहा है। उत्पादन का काम परंपरागत कश्यप कारीगरों के हाथों से निकलकर झोजा (मुस्लिम) बिरादरी के लोगों के हाथों में आ गया है। कश्यप कारीगर सुकलाई आदि जैविक पदार्थी से गुड़-शक्कर, चाकू, लड्डू (सौंठिया), खुरपापाड़, मिंझा, पापडी, रसकट आदि गुड़ की विभिन्न किस्मों का उत्पादन करते थे। आज की स्थिति यह है कि कोल्हू मालिक न केवल बिजली की चोरी करते हैं बल्कि प्रतिबंधित पॉलीथिन, पुराने टायरों को जलावत में इस्तेमाल करते हैं। साथ ही सेलखड़ी, सोफ्ट स्टोन पावडर, लिक्वेिड अमोनिया, सल्फर, डिस्ट्रिलॅरी से निकला जला हुआ शीरा तथा अन्य जहरीले कैमिकलों को बेहिचक धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। इन्हें लोगों के स्वास्थ से नहीं, अपनी आय व मुनाफे से मतलब है। यह एक प्रकार का गुड़ जिहाद ही है। अधिकारी दूषित गुड़ शक्कर बनाने वाले कोल्हुओ पर छापे मारते हैं, उन्हें सील करते हैं फिर भी लोगों के स्वास्थ से खिलवाड़ करने वाले और मुजफ्फरनगर के गुड़ को बदनाम करने वालों का कालाधंधा रुक नही रहा है। इस पर बेहद सख्ती की जरूरत है।