मुजफ्फरनगर : रामपुर तिराहा कांड की 30वीं बरसी पर उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज 2 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा स्थित शहीद स्थल पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी. इस दौरान सीएम धामी ने रामपुर तिराहा स्मारक स्थल पर आंदोलन के बलिदानियों की प्रतिमाएं स्थापित करने की घोषणा की. इसके साथ ही सीएम धामी ने शहीद स्थल के लिए भूमि दान करने वाले महावीर प्रसाद शर्मा की प्रतिमा स्थल का शिलान्यास किया.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि 30 वर्ष पहले नए राज्य गठन के लिए उत्तराखंड के आंदोलनकारी ने काफी यातनाएं सही. गठन के बाद आज उत्तराखंड विकास के पथ पर अग्रसर है. जिनके बलिदान से उत्तराखंड बना, उन्हें कभी बुलाया नहीं जा सकता. राज्य के मूल स्वरूप को बचाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. उत्तराखंड को सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने के विकल्पहीन संकल्प को मूल मंत्र मानते हुए राज्य के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा है. जिन्होंने मां की ममता छोड़ी और बहन की राखी त्याग दी, ऐसे आंदोलनकारियों को राज्य सरकार ने 10 प्रतिशत क्षेतिज आरक्षण दिया. सक्रिय आंदोलनकारियों को पेंशन भी दी जा रही है.
डेमोग्राफी को संरक्षित रखने का सरकार कर रही काम: सीएम धामी ने रामपुर गोलीकांड के सभी बलिदानियों की प्रतिमा संस्कृति विभाग द्वारा रामपुर शहीद स्थल में लगाए जाने की घोषणा की गई. उन्होंने कहा कि इससे हमारे आने वाली पीढ़ी अपने आंदोलनकारियों को याद रख सकेगी. उन्होंने कहा कि राज्य के मूल स्वरूप को बचाए रखने के लिए राज्य आंदोलनकारी, मातृशक्ति और नौजवानों को इस तरह जागृत होकर और प्रहरी बनकर काम करना होगा. प्रदेश की डेमोग्राफी को संरक्षित रखने का दायित्व भी हम सभी को आगे आकर निभाना होगा. हालांकि, डेमोग्राफी को संरक्षित रखने के लिए राज्य सरकार अपना काम कर रही है, इसके लिए धर्मांतरण कानून प्रदेश में लागू किए गए हैं.
स्मारक का किया शिलान्यास: इस दौरान मुख्यमंत्री ने स्मारक के लिए एक बीघा भूमि दान करने वाले पंडित महावीर शर्मा का स्मारक का शिलान्यास किया. इसके लिए मुख्यमंत्री ने 14 लाख से अधिक की धनराशि संस्कृति विभाग को आवंटित की है.
तत्कालीन सरकार पर साधा निशाना: पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व सांसद रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि आंदोलनकारी का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि जिस क्रूरता से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने आंदोलन को दबाने का प्रयास किया, वह अपने आप में कटु उदाहरण है.
उधमसिंह नगर के खटीमा में राज्य आंदोलनकारियों ने शहीद स्मारक पहुंच कर मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा कांड के शहीद आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित की. इस दौरान राज्य आंदोलनकारियों ने तहसीलदार के माध्यम से 6 सूत्रीय मांग पत्र मुख्यमंत्री को भेजा. जिसमें 12 हजार राज्य आंदोलनकारियों के परिवार के हितों एवं सम्मान रक्षा हेतु राज्य सम्मान परिषद का गठन करने, राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की तर्ज पर सम्मान व सुविधा देने समेत मुख्य बिंदु शामिल है.
अल्मोड़ा में शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि: मुजफ्फरनगर कांड की 30वीं बरसी पर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने अल्मोड़ा के चौघानपाटा गांधी पार्क में शहीदों को श्रद्धांजलि दी. वहीं मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को दंडित करने की मांग करते हुए नारे लगाए. वहीं उत्तराखंड बनने के बाद से बनी सभी सरकारों के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया. उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष अधिवक्ता पीसी तिवारी ने कहा कि मुजफ्फरनगर कांड को 30 वर्ष हो गए हैं, लेकिन हमारे उत्तराखंड को न्याय नहीं मिला है.
रामपुर तिराहा गोलीकांड: 90 के दशक में उत्तर प्रदेश से अलग पहाड़ी राज्य की मांग चल रही थी. साल 1994 तक आते-आते पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन की मांग तेज होने लगी थी. अलग राज्य आंदोलन के लिए आंदोलनकारियों द्वारा किए जा रहे आंदोलन के दौरान 1 सितंबर 1994 को खटीमा में गोली कांड हुआ. जहां बर्बरता पूर्वक लाठियां और गोलियां चलाई गई, जिसमें 7 राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए. उसकी प्रतिक्रिया के तहत 2 सितंबर 1994 को मसूरी में गोली कांड हुआ.
एक अक्टूबर को देहरादून से दिल्ली किया कूच: इसके बाद दिल्ली में अपनी मांगों को पूरजोर तरीके से उठाने के लिए एक अक्टूबर की रात बड़ी संख्या में आंदोलनकारी बसों में भरकर देहरादून से दिल्ली की तरफ कूच करने लगे. लेकिन तत्कालीन यूपी सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव नहीं चाहते थे कि आंदोलनकारी दिल्ली जाएं. हालांकि जब यूपी पुलिस आंदोलनकारियों को देहरादून और हरिद्वार में रोकने में नाकाम रही, तो उन्होंने आंदोलनकारियों को रोकने के लिए मुजफ्फनगर जिले में बर्बर तरीका अपनाया.
आज भी जारी है इंसाफ के लिए लड़ाई: 2 अक्टूबर तड़के करीब तीन बजे पुलिस ने उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को रोकने के लिए लाठीचार्ज किया. आरोप है कि इस दौरान पुलिस ने फायरिंग भी की, जिसमें 6 राज्य आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी. आरोप है कि इस दौरान कई महिलाओं के साथ रेप भी किया गया था. इस पूरे मामले में दो दर्जन से अधिक पुलिसकर्मियों पर रेप, हत्या, छेड़छाड़ और डकैती जैसे कई मामले दर्ज हैं. फायरिंग मामले में साल 2003 में तत्कालीन डीएम को भी नामजद किया गया था. घटना के 30 साल बाद भी कोर्ट में इंसाफ के लिए लड़ाई जारी है.
रामपुर तिराहा गोलीकांड में आंदोलनकारी रविंद्र रावत, सत्येंद्र चौहान गिरीश, राजेश लाखेड़ा, सूर्य प्रकाश थपलियाल, अशोक और राजेश नेगी ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. उत्तराखंड के लिए 2 अक्टूबर 1994 का दिन गोलीकांड का एक काला अध्याय, सबसे क्रूर और गहरा जख्म देने वाला अध्याय माना जाता है.