शामली। महाभारत कालीन इस्सोपुरटील को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए यमुना पर साढ़े आठ करोड़ की लागत से पक्का घाट बनाया जाएगा। इसके लिए जलशक्ति राज्य मंत्री को ड्रैनेज खंड ने प्रस्ताव तैयार कर भेजा है। इस्सोपुरटील परिसर में अभी तक करीब साढ़े तीन करोड़ के विकास कार्य कराए जा चुके हैं। इस्सोपुरटील का महाभारत काल में भी महत्वपूर्ण स्थान रहा था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्र महाभारत सर्किट से जुड़े हैं। शामली हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र के बीच स्थित हैं, इसलिए माना जा रहा है कि कुरुक्षेत्र जाते समय कौरव और पांडव यहां से होकर गए होंगे। इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। एमएलसी वीरेंद्र सिंह की निधि से यहां कई विकास कार्य कराए गए हैं। सीडीओ शंभूनाथ तिवारी ने बताया कि अब ड्रैनेज खंड की ओर से यमुना पर पक्के घाट का निर्माण कराने के लिए जलशक्ति राज्य मंत्री दिनेश खटीक को साढ़े आठ करोड़ का प्रस्ताव दिया गया है। दिनेश खटीक जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं। ऐसे में इस प्रस्ताव को जल्द मंजूरी मिलने की उम्मीद है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर कैराना विधानसभा क्षेत्र के तहत मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना में शामिल किया गया है। पर्यटन विभाग की ओर से स्थान की पौराणिकता को देखते हुए इसे मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना में 50 लाख रुपये की धनराशि स्वीकृत दी गई थी, जिसमें भगवान शिव, राधा-कृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य किया जा रहा है। चहारदीवारी निर्माण कार्य, 250 मीटर लंबी सीसी रोड, श्मशान घाट, गोशाला और मुख्य द्वार से यमुना तट पर जाने के लिए सीसी सड़क का निर्माण किया गया है।
कांधला क्षेत्र के इस्सोपुरटील में महाभारत कालीन अवशेष दबे हुए हैं। वर्ष 2002 में हुई कुछ खोदाई के दौरान इन टीलों में छपे हुए मृद भांड मिले थे। माना जा रहा है कि कांधला से करीब 12 किमी दूर बसे इस्सोपुरटील में यमुना के किनारे मिट्टी के ऊंचे टीले हैं। यहां करीब 3200 साल पहले लौह युगीन सभ्यता रही होगी। यमुना जल मार्ग से आवागमन होता था, तब यह स्थान काफी महत्वपूर्ण रहा होगा। वर्ष 2002 में चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. रणधीर सिंह, शामली निवासी डॉ. उमर सैफ ने इस स्थान पर जांच की थी। मामूली सी खोदाई के दौरान यहां पर चित्रित धूसर मृदभांड मिले थे। डॉ. उमर सैफ बताते हैं कि यहां मिले मृदभांड पर ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ था।