शामली। बढ़ती गर्मी के बीच हुक्के की गुड़गुड़ाहट से सियासी पारा भी चढ़ता जा रहा है। चुनावी शोर के साथ गांवों में घेर और चौपालों पर चर्चाओं का जोर भी बढ़ने लगा है। दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुक्के की गुड़गुड़ाहट के बीच होने वाली पंचायतों के फैसलों से देश की राजनीति प्रभावित होती रही है। इस वक्त लोकसभा चुनाव पूरे शबाब पर है। गांवों में बैठकों और पंचायतों का दौर चल रहा है। इसके चलते हुक्का और तंबाकू खरीदने वालों की संख्या में करीब 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है।
खाप पंचायतों से लेकर अन्य पंचायतों में अभी भी हुक्के को गुड़गुड़ाना शान समझा जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और सहारनपुर में तो हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ आज भी बड़े फैसले चंद मिनटों में लिए जाते हैं। लोकसभा चुनाव का प्रचार रफ्तार पकड़ने के साथ ही बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और सहारनपुर में हुक्के की खरीददारी में भी इजाफा हो रहा है।
शामली के हुक्का व्यापारी मनीष बंसल ने बताया कि पिछले करीब एक सप्ताह से चुनाव के कारण हुक्के से लेकर तंबाकू की बिक्री में करीब 20 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। लगातार देहात क्षेत्र के लोग हुक्का लेने के लिए पहुंच रहे हैं। राजबीर का कहना है कि अचानक ही हुक्के की बिक्री बढ़ी है, जो दुकानदारों के लिए भी अच्छा संदेश है।
कैराना के व्यापारी संजय कुमार का कहना है कि चार दिन से हुक्के की बिक्री अधिक बढ़ी है। पांच से लेकर 30 हजार रुपये तक का हुक्का खरीदने के लिए विभिन्न गांवों के लोग पहुंच रहे हैं। यही नहीं, हरियाणा के पानीपत, सोनीपत, रोहतक से भी हुक्का खरीदने के लिए लोग पहुंच रहे हैं।
झिंझाना के हुक्का विक्रेता खुर्शीद ने बताया कि पांच साल से हुक्का बेच रहे हैं। चार दिन से लगातार हुक्का बनवाने की डिमांड बढ़ी है। लोगों की ऑन डिमांड पर भी हुक्के तैयार कराए जा रहे हैं। पांच से लेकर 10 हजार तक के हुक्के बिक्री के लिए मौजूद है।
बत्तीसा खाप के शोकिंदर सिंह का कहना है कि हुक्का विभिन्न गांवों और खाप की शान है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास समय नहीं है। हुक्के के सहारे एक-दूसरे के पास बैठकर लोग सुख दुख भी शेयर करते हैं। हुक्का एक तरह से सौहार्द भी कायम करता है। कालखंडे खाप के बाबा संजीव कालखंडे का कहना है कि हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ ही चंद मिनटों में लोगों की समस्याओं का समाधान किया जाता है। हुक्का गांव की आज भी शान है।
किसानों की राजनीति का केंद्र किसान भवन हुक्के की गुड़गड़ाहट से गुलजार रहता है। चंद मिनटों में भाकियू सुप्रीमो रहे महेंद्र सिंह टिकैत सरकारों के खिलाफ ताल ठोकते रहते थे। बड़े से बड़े मामले वो हुक्के की एक गुड़गुड़ाहट से निपटा देते थे। आज भी किसान आंदोलनों में किसानों के साथ हुक्का रहता है।
इतिहास के अध्यापक नसीम खान का कहना है कि ऐसा माना जाता है कि हुक्का की अवधारणा की उत्पत्ति मध्यकालीन भारत में हुई थी। एक समय यह अमीरों का प्रांत था, खासकर मुगल शासन के दौरान यह काफी लोकप्रिय था। भारत में प्राचीन काल से ही हुक्के का प्रयोग न केवल एक रिवाज था, बल्कि प्रतिष्ठा का विषय था। अमीर और जमींदार वर्ग हुक्का पीते थे। कई गांवों में पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार हुक्के में तंबाकू पिया जाता है। हुक्का आज भी गांवों के लोगों की शान हैं। प्राचीन काल में हुक्का का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता था। हुक्के को जहां भारत में हुक्का, ज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान में चिलन, कश्मीर में जजीर, मालदीव में गुड़गुड़, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड में शीशा कहा जाता है।
बेशक हुक्के से तमाम एतिहासिक किस्से-कहानियां जुड़े हों, लेकिन यह भी सच है कि हुक्का बीमारियों का भी सबब बन जाता है। शामली सीएचसी प्रभारी डॉ. दीपक के अनुसार, हुक्का पीने से दमा की बीमारी हो सकती है। हुक्के के धुएं की वजह से शरीर की नसें सिकुड़ना शुरू हो जाती हैं। रक्त में होमोसिस्टीन का स्तर बढ़ जाता है। इससे दिल और दिमाग में थक्का जमने का खतरा बढ़ जाता है। कैंसर का खतरा तो होता ही है।