शामली। प्राचीन समय में कुएं काफी महत्वपूर्ण थे और कुओं के पानी की जरूरत के साथ सामाजिक और धार्मिक क्रियाकलापों में भी इसका उपयोग किया जाता था। पहले लोग कुओं का पानी का ही प्रयोग थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया वैसे-वैसे कुओं का अस्तित्व भी खत्म होता चला गया। कहीं कुओं पर कब्जा कर लिया गया तो कहीं कुओं का अस्तित्व को लोगों ने खत्म कर दिया। अब नाम मात्र के ही कुएं बचे हैं। अब कुओं का जल दूत एप के जरिये हिसाब रखा जाएगा। इसके लिए पंचायत सचिवों को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

शासन ने कुओं को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास शुरू किए हैं। शासन की तरफ से जारी किए गए जलदूत एप से पूरे प्रदेश में कुओं की पड़ताल कराने के लिए निर्देश दिए गए हैं। एप के माध्यम से गांवों में सचिव और रोजगार सेवक मौके पर जाकर कुओं की लोकेशन दर्ज करेंगे। यही नहीं कुएं का व्यास, जलस्तर, प्री और पोस्ट मानसून को दर्ज किया जाएगा। कुआं कितना पुराना, कब पाटा गया। पाटते समय उसमें पानी था या नहीं आदि सभी जानकारियों एप के जरिये फीड की जाएंगी। कई दशक पहले लोग कुओं का पानी खाने, पीने व अन्य जगह प्रयोग करते थे। किसी को पानी की जरूरत होती थी तो वह हैंडपंप पर न जाकर कुएं से पानी लाता था, क्योंकि कुएं का पानी शुद्ध माना जाता था। जैसे-जैसे समय बदला वैसे-वैसे कुओं का अस्तित्व भी खत्म हो गया। जहां कुए थे वहां कॉलोनियां काट दी गईं, क्योंकि काफी स्थानों पर कुएं खेतों में थे और खेत में कालोनी काटने के कारण यह खत्म कर दिए गए। मंदिरों में भी कुओं को बंद कर दिया गया और कुएं का पानी अब प्रयोग में नहीं जाया जाता है। जल दूत पर कुओं की सूचना फीड होने के बाद कुओं को अस्तित्व में लाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

जल संरक्षण के अभियान में अब कुओं को भी शामिल किया गया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस एप को बनाया था। इसमें मनरेगा को भी जोड़ा गया है। मनरेगा में कार्य कर रहे रोजगार सेवकों को इसकी जिम्मेदारी दी जाएगी। नेशनल मोबाइल मॉनीटरिंग सिस्टम को यूजर आईडी एवं पासवर्ड सभी को देने के लिए, कहा गया है।

शासन से जल दूत एप के माध्यम से कुओं को ढूंढने के आदेश मिले हैं और इसके लिए पंचायत सचिवों को जिम्मेदारी सौंप दी गई है। – चेतन कुमार, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी मनरेगा।